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किन्तु उसका उद्गम मात्र जैन "मूलमंत्र" में सिद्ध होता है। भूवलय ग्रंथ उसकी व्यापक अभिव्यक्ति देता है। तीर्थकरत्व की महिमा कि उसे क्यों मात्र नरभव से ही जीव द्वारा प्राप्त किया जा सकता है, जीव की नारी पर्याय अथवा नपुसंक पर्याय से नहीं, की अभिव्यक्ति भी बेहद सजीव होकर सैंधव पुराअंकनों में उभरी है जो जैनधर्म के सिवाय किसी भी अन्य धर्म संदर्भो से मेल नहीं खाती है। ये सब विशेषतायें जैन पुरा अध्यात्म के अति समीप सैंधव पुराअंकनों को ला देती हैं।
गुममा
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