SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूल सैंधव पुरालिपि (संकेत - चित्रलिपि) ↓ Jain Education International मूल प्राकृत (संकेत + मूल देवनागरी) ↓ ब्राह्मी (27 पुरा संकेत) ↓ वैदिक संस्कृत, ↓ संस्कृत और क्षेत्रीय प्राकृत ↓ आधुनिक संस्कृत, प्राकृत, पाली ↓ फारसी, उर्दू एवं अन्य प्रांतीय लिपियां उसी पुरालिपि की प्रथम कुंजी श्रवणबेलगोल की एक विशाल पाषाण शिला पर दिखने से (चित्र) समस्या का हल दिखाई दिया जिसे कांफ्रेंसों में (इतिहास / एपीग्राफी में) प्रयत्न रूप प्रस्तुत भी किया गया किंतु आधुनिक पुराविदों ने भी कोई ध्यान नहीं दिया । अचानक एक केलैंडर में बैठी जिन मुद्रा के पैरों पर अंकित उसी लिपि को देख ठोस आधार मिल गया कि वह पुरालिपि जिस संस्कृति को दर्शाती है वह मूल भारतीय संस्कृति अन्य कुछ नहीं मात्र जिन श्रमण संस्कृति ही है । इसलिए उसकी वर्णमाला पाठकों के लिए प्रस्तुत की है। उसी के आधार पर यह पुस्तक है । 166 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy