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नौशारो से प्राप्त अंकन नौशारो-5- महाव्रती की वीतरागी तपस्या से प्रभावित होकर सामान्य गृहस्थ भी तपस्वी बनकर अष्टकर्म नाशकर भवचक
से पार होने को उद्यत हुए । नौशारो-8- स्वसंयम के द्वारा तपस्वी ने पुरूषार्थमय सल्लेखना धारण करके निश्चय व्यवहार धर्म में पुरुषार्थ बढाया । नाशारो-7- आरंभी गृहस्थ ने तीन धर्मध्यानों के स्वामित्व से दूसरे शुक्लध्यान तक की यात्रा करके भवचक को पार करने
तत्पर हुआ । नौशारो-8- वीतरागी तपस्वी ने तीन धर्मध्यानों के स्वामित्व से गुणस्थानोन्नति की । नाशारो- (अ) सल्लेखी अणुव्रती था जो वीतरागी तपस्या में रत था ।
(ब) दो धर्मध्यानों की स्वामिनी ने रत्नत्रय खोकर पुनः रत्नत्रय उठाया और गुणस्थानोन्नति करके कम से गुणस्थानोन्नति करते हुए निकट भव्यता और आत्मस्थता पायी ।
निन्दोवारी दाम्ब से प्राप्त अंकन नद- 1 अ-(अ) भवघट से तिरान |
(ब) तपस्वी ने छत्रधारण (राजा का संरक्षण पाकर) 6 प्रतिमाएं धारण की और वीतरागी तपस्या में रत हुआ । रत्नत्रय संभालते उसने षट् द्रव्यों का चिंतन किया और सल्लेखना धारण कर गुणस्थानोन्नति करता हुआ
समाधिमरण को प्राप्त किया । नद-2 अ- षट् आवश्यकों को जानने वाले निकट भव्य का संहनन महामत्स्य जैसा उठा ।
तरकाई किला से प्राप्त अंकन तरक-2 अ- चतुर्गति के प्रमादी घेरे । तरक- 3 अ- गतियाँ पाँच होती है ।
जे. एम. केनोअर द्वारा घोषित कुछ पुरालिपि अंकन शुद्ध/सिध्द जीव बनने और भवचक पार करने हेतु प्रतिमाएं बढ़ाते संघस्थ मनुष्य रत्नत्रय का वातावरण बनाते हैं और आरंभी गृहस्थ होकर घर से ही आत्मा के दश धर्मों को पालते हैं जिसे ऋषभ देव का वृषभ उन्हें दिखाता है। आदि सल्लेखी बारह भावनाऐं भाते शुद्धात्मा (सिद्धत्व) हेतु अपनी मानव जन्म की पात्रता और स्वात्मरक्षा हेतु जिम्मेदारी जानकर पंचमगति पाने सप्त तत्त्व चिंतन करते पंचाचारी बारह व्रतों को पालते हैं। जैसा कि तपस्वी ने भी पुरुषार्थ से दशधर्म पालकर आत्मधर्म की रक्षा करती सल्लेखना लेते हुए पंच परमेष्ठी का स्मरण किया है ।
धोलावीरा से प्राप्त अन्य सामग्री सल्लेखी दो धर्म ध्यानों का स्वामी पंचाचारी तपस्वी स्वसंयमी है। सल्लेखी ने निश्चय-व्यवहार धर्म की शरण ली । पंचाचारी ने सल्लेखना की वैयावृत्ति दो धर्मध्यानों से की । महामत्स्य की तरह संहनन पाकर हर काल में अष्टकर्म जनित चार गतियों को क्षय करने वीतरागी तपस्या हई है
वातावरण ।
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