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पिराक से प्राप्त अंकन
पीके- 1 अ - वीतरागी तप सल्लेखी के चतुराधन को आत्मस्थता से गहराता हुआ पंचमगति का लक्ष्य रत्नत्रय से बढ़ाता है पी के - 6 अ - चतुर्गति में स्थित चारों गतियों के जीव ।
पी के 10 अ- गतियाँ पांच होती हैं।
पी के - 22/23/33 अ- संसार में चतुर्गति भ्रमण है ।
(1)
(1)
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घारो भीरो से प्राप्त अंकन
आत्मस्थता से पुरुषार्थी वातावरण को उन्नत करता है
घोला वीरा से प्राप्त अंकन
निकट भव्य युगल बंधुओं ने भवचक को अरहंत पद की प्राप्ति और पंचमगति से भव को कालचक के पार मन की स्थिरता करके मानस्तंभ सा भवचक पार करते भवघट तिरा ।
जिनध्वजा की शरण में निश्चय व्यवहारी धर्मस्थों ने सल्लेखना लेकर दो धर्मध्यानों से ही त्रिगुप्ति साध चारों अनुयोग पढ़कर दूसरे शुक्लध्यान तक का मार्ग साधा ।
अलाहदिनों से प्राप्त पुरा अंकन
बालाकोट- 4 अ गुणस्थानोन्नति करते हुए निकट भव्य ने वातावरण को निश्चय व्यवहार धर्म से चतुराधन द्वारा उन्नत कर तीर्थकरत्व का पुरूषार्थ किया और प्रतिमाऐं धारण की ।
बालाकोट- 5 अ स्वसंयमी पंचाचार करता है ।
अद 2 अ- तीन धर्म ध्यानी अर्धचकी ने रत्नत्रय से तीर्थंकरत्व पाया ।
अद 3 अ- वीतरागी तप को पुरुषार्थ बढाते हुए तीन धर्म ध्यानों के स्वामी आरंभी गृहस्थों ने छत्रधारी राजाओं के ही तरह
किया ।
अद 4 अ - गुणस्थानोन्नति करके छत्रधारी राजाओं ने वीतरागी तपस्या आत्मस्थ होकर उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालों में की।
अद 5 अ - निश्चय व्यवहार धर्मी संघाचार्य ने शिखर तीर्थ पर सिद्धत्व (मोक्ष) पाया ।
अद 6 अ - केवलत्व / कैवल्य की प्राप्ति निश्चय - व्यवहार धर्म से गुणस्थानोन्नति द्वारा वीतरागी तप करने पर ढ़ाईद्वीप में रत्नत्रय
से होती है।
अद 7 अ - वीतरागी तप करते तपस्वी सल्लेखना को निश्चय-व्यवहार धर्म से मन को स्थिर करके अरहंत पद पाने
करते हैं।
अद 9 अ- त्रिगुप्ति तीन धर्मध्यानी भी करते हैं ।
बालाकोट से प्राप्त अंकन
बालाकोट- 11 अ चारों कषायों को त्यागकर तपस्वी ने पंच परमेष्ठी आराधन को रत्नत्रयी चतुराधन से बालाकोट- 2 अ - रत्नत्रय से गुणस्थानोन्नति वाले सल्लेखना झूले द्वारा सल्लेखी ने दो धर्मध्यानों की भूमिका से उठकर
तीर्थंकरत्व पाने प्रतिमाएं धारण की।
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