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जंबूद्वीप में समता पुरुषार्थ और वीतरागी तप की भूमिका है । जंबूद्वीप में एकदेश स्वसंयमी और केवली हैं जिन्होंने वीतरागी तपस्या की । सप्त तत्व चिंतन पंचम गति के लिए मन की स्थिरता के साथ वीतराग तप लाता है । (अ) तीन धर्म ध्यानी को चारों अनुयोगों से परिचित होना चाहिए । (ब) दो धर्म ध्यानों का स्वामी अर्धचकी, आरंभी गृहस्थ है जिसने वातावरण को वीतरागी तपस्या से जोड़ दिया । । तपस्वी आरंभी गृहस्थ तीन धर्मध्यानी है जो ढाईद्वीप में यशस्वी चतुराधक है और जिन सिंहासन के चारों लिंगी भी आराधना लीन, अरहंत भक्त चतुराधक हैं । पुरुषार्थ बढ़ाते घटाते आरंभी गृहस्थ तीन धर्मध्यानों को ढ़ाईद्वीप में हरकाल में गृह में और गृह त्यागने पर रत्नत्रय को पा सकता है । गुणस्थानोन्नति बारह व्रतों के पालन और वीतराग तपस्या में ही संभव है । गुणस्थानोन्नति नवदेवताओं की आराधना, दिगंबरत्व और ब्रह्मचर्य द्वारा वीतरागी तपस्या से ही संभव है। चातुर्मास सचेलक को ढ़ाईद्वीप में एकदेश समता से चारों गतियों को मेटने में पंचाचार की राह दिखलाते हैं । वीतरागी तपस्या मन वचन काय की स्थिरता और रत्नत्रय के साथ सल्लेखना के वैयावृत्य में गुणस्थानोन्नति लातीहै जिससे तपस्वी, प्रतिमाएं धारण करके सल्लेखना के साथ चतुर्गति नाशने को घर त्याग, अष्टान्हिका व्रत धारण करने
तत्पर होता है। (11) आरंभी गृहस्थ तीन धर्मध्यानी से, पुरुषार्थ उठाते जाने पर वीतरागी तपस्वी बनते हैं । (12) गुणस्थानोन्नति और नवदेवता आराधन वातावरण में गुणस्थानोन्नति लाकर वीतरागी तपस्या में बदलते हैं । (13) महामत्स्य जैसा उत्तम संहनन पा उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी में अष्टकर्म जन्य चतुर्गति से वीतरागी तपस्या द्वारा पुरुषार्थी
सल्लेखना होने पर अगला भव तीन धर्म ध्यानी और चार अनुयोगों के ज्ञानी होने का बनाता है
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रत्नत्रयी जंबूद्वीप में एकदेश संयमी भी रत्नत्रयी सल्लेखना द्वारा वीतरागी तपस्या करता है । रत्नत्रयी जंबुद्वीप में छत्रधारी राजा (छत्री) एकदेश संयमी बनकर आरंभी गृहस्थ की भूमिका में तीन धर्मध्यानी श्रावक बन पंचमगति की प्राप्ति हेतु चतुराधन करता है । आत्मस्थ तपस्वी सात तत्वों का मनन करके पंचमगति के लिए निश्चय-व्यवहार धर्म और स्वसंयम को धारकर दो शुक्लध्यानों की प्राप्ति के लिए क्रमोन्नति करता पंचाचार पालता है । गुणस्थानोन्नति करते हुए नवदेव आराधना करता निश्चय-व्यवहार धर्मी वीतरागी तपस्या करता है । (ब) पंचपरमेष्ठी निकट भव्य है जिसका मोक्ष छह भवों में निश्चय से है। (अ) अंतहीन गठान पुर्नजन्म की ।
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