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(466) भवघट से तिरने दो धर्मध्यानों के स्वामित्व से गुणस्थानोन्नति करने सप्त तत्त्व का चिंतन और वीतरागी तपस्या ही
मार्ग है। (467) चतुराधना हेतु एकदेश स्वसंयमी ढाईद्वीप में संयम संजोता है-जंबूद्वीप में सम्यक्त्व धातकी खंड में भी सम्यक्त्व और
पुष्करार्ध में चतुराधन, तब चतुराधन द्वारा वह लक्ष्य पाता है । (468) भवघट से तिरने दो धर्मध्यानों का स्वामी दूसरे शुक्लध्यान तक तपस्वी या एकदेश स्वसंयमी से आरंभ करके ध्यानस्थ ,
प्रभु की वीतरागी रत्नत्रयी अवस्था तक का मार्ग वीतरागी तपस्या से तय करता है । (469) अदम्य पुरुषार्थी सल्लेखी निश्चय-व्यवहार धर्मी वीतरागी तपस्वी पंचाचार करके भगवान की वीतरागी रत्नत्रयी
ध्यानस्थ अवस्था तक वीतरागी तपस्या से ही बढ़ता है। (470) बारह भावनाएं भाते छत्रधारी (राजा) स्वसीमित हो एक देश स्वसंयमी, क्षयोपशम बढ़ाते वीतरागी तपस्या करता है । (471) (अ) चार धर्मध्यानी जीव गृह को त्याग पंचाचार पालता है ।
(ब) संघस्थ अदम्य पुरुषार्थी स्वसंयमी महाव्रती अदम्य पुरुषार्थ सहित संघ में रहते हैं । (472) सिद्धत्व (शद्ध आत्मस्वरूप) के लिए अरहंत पद बड़े पुरुषार्थ से मिलता है । (473) (अ) तीन धर्मध्यानों के स्वामित्व से ही सिद्धत्व लक्ष्य बन जाता है ।
(ब) भवघट से तिरने उपशमी, क्षयोपशमी दोनों को ही पुरुषार्थ करना पड़ता है । (सील उल्टी है) (474) चार गतियों से पार होने के लिए रत्नत्रयी जीवन पंचमगति साधना, सल्लेखना और दिगंबर वीतरागी तपस्या रत्नत्रय
साधना से करना आवश्यक है । (475) पंचाचारी सल्ल्खी चार अनुयोगों के ज्ञानी और निश्चय-व्यवहार धर्म मार्ग के संघाचार्य है । (476) निश्चय-व्यवहार धर्म का वातावरण भवघट से पार कराने वाला दो धर्मध्यानों के स्वामित्व से प्रारंभ होता है। (477) वही (उल्टी सील है)। (478) भवचक से पार होने सल्लेखी दो धर्मध्यानों की भूमिका से आत्मस्थ होते हुए स्वसंयमी बनकर चारों कषायों को त्यागते
हुए संघाचार्य की शरण में जा बारह भावनाऐं चिंतन करता है । (479) निकट भव्य स्वसंयमी पंच परमेष्ठी आराधक है । (480) चारों कषाऐं त्याग कर ही तपस्वी बनते हैं। (481) ओखल मूसल आरंभी गृहस्थ की मूल भूमिका है (सील उल्टी है) (482) (एक वस्त्रधारी जिनमार्गी ऐलक/आर्यिका) सचेलक तपस्वी हैं। (483) युगल बंधु तपस्वी (कुलभूषण-देशभूषण मुनि श्रमण) हैं। (484) तपस्वी साधक पुरुषार्थी हैं। (485) अस्पष्ट | (486) भवघट में शुद्धात्मा का मक्खन सी तिरती है। । (सील उल्टी दर्शायी है) (487) सल्लेखी पंचाचारी वीतरागी तपस्वी है ।
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