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चार गतियों से बचने का उपाय करके पंचमगति पाने हेतु पुरुषार्थ द्वारा की। (ब) यह हर कालार्ध के दो आरों में घटा है। निकट भव्य ने अंतहीन गठान मेटते हुए पंचम गति के लिए वीतरागी तपस्या हेतु मन वचन काय से आत्मस्थता स्वीकारते चातुर्मास में पंचाचारी तपस्या त्रिलोकीनाथ सिद्धप्रभु के चरणों में की। अरहंत की शरणागत स्वसंयमी एक आरंभी गृहस्थ था जिसने चार धर्मध्यानों सहित संघ नेतृत्व किया ।
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page Ne. CIV 19-40 (19) भवघट तिरने दो धर्मध्यानी भी चार शुक्लध्यानों की भावना भाते तपस्वी बनकर स्वसंयम और इच्छा निरोध करते हैं ।
रत्नत्रयी जंबूद्वीप में शिखर तीर्थ पर रत्नत्रयी वातावरण में आरंभी गृहस्थ ने संथारा लेकर पंचम गति हेतु सल्लेखना
धारी और रत्नत्रयी पंचाचारी सल्लेखना वीतरागी तपस्या सहित की । (21) पुरुषार्थी सल्लेखी आत्मस्थता से वीतरागी तपस्या करते हुए छत्रधारी राजा, सचेलक ऐलक/आर्यिका बनकर भी
महामत्स्य के उत्तम संहनन की तरह दृढता से उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी में अष्टकर्मों द्वारा उपार्जित चार गतियों के कष्ट झेलता वीतरागी तपस्या करता है । भवधट से तिरने दो धर्म ध्यानों के स्वामी ने गुणस्थानोन्नति करके रत्नत्रयी वीतरागी दिगम्बर जिनलिंगियों की शरण में वीतरागी तपस्या की। निकट भव्य ने दो शुक्ल ध्यानों की प्राप्ति हेतु रत्नत्रयी तपस्वी बनकर (महाव्रत धारण) चतुराधकी समाधिमरणी सल्लेखना का पुरुषार्थ उत्तरोत्तर बढ़ाया और वीतरागी तपस्या की । अदम्य पुरुषार्थी बनकर सल्लेखी ने आत्मस्थता सहित वीतरागी तप किया और सम्यक्त्वी तपस्वी बन छत्रधारी राजा से भी रत्नत्रय धारी महाव्रती बनकर वीतरागी तपस्या की । सप्त तत्त्व चिंतन द्वारा चतुराधन करना | पंचमगति हेतु अतिदृढ़ स्वसंयमी बन दो शुभध्यानों के धारी आरंभी गृहस्थ ने भी निश्चय -व्यवहार धर्म आराधक बनकर वीतरागी तप साधना की । निकट भव्य ने सल्लेखना धारण कर महामत्स्य सा वजवृषभनाराच संहनन पाकर उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालों में वीतरागी
महाव्रती तपस्या समाधिमरण चतुराधन सहित करते वीतरागी तप किया है। (28) अरहंत पद के भावी ने जम्बूद्वीप के भरत ऐरावत क्षेत्रों में दो धर्म ध्यानों से ही समाधिमरण चतुराधन सहित भाते रत्नत्रयी
महाव्रत धारणकर वीतरागी तपस्या की है। ___ अदम्य पुरुषार्थी ने सल्लेखना धारणकर आत्मस्थ वीतरागी तपस्या निश्चय-व्यवहार धर्म सहित तीसरे शुक्लध्यान में तीर्थकर प्रकृति को पाया । आरंभी गृहस्थ ने तीन धर्म ध्यानों सहित स्वसंयम धारण कर सल्लेखना करते निश्चय-व्यवहार धर्म की चारों अनुयोगों
के अध्ययन सहित शरण ली । (31) भवघट से तिरने दो धर्म ध्यानों के स्वामी ने चारों धर्मध्यान प्राप्तकर स्वसंयम धारा ।
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