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राजकल में जन्म से वैभव
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जन्म से सफाई
करने का कार्य मिला
गधा
उत्त्व यात्रा कम कोटपाडी गोत्र कर्म के दो भेद है
(1) उच्च गोत्र और (2) नीच गोत्र मिला।
1) उच्च गोत्र :- जिस कर्म के उदय से आत्मा उच्च, प्रशस्त एवं श्रेष्ठ कुल में जन्म लेती है उसे उच्च गोत्र कर्म कहते है। अर्थात् जिस कुल ने धर्म, न्याय-नीति, सत्य आदि का आचरण किया हो, दुःखी पीड़ित की रक्षा करके तदनुसार कीर्ति और प्रतिष्ठा प्राप्त की हो वह उच्च
गोत्र हैं। जैसे :- इक्ष्वाकु वंश, हरिवंश आदि। 2) नीच गोत्र :- जिस कर्म के उदय से आत्मा नीच, अप्रशस्त एवं निम्न निम्जामोत्रा कम कुल में जन्म लेती है उसे नीच गोत्र कहते है। अनीति, अधर्म और पापाचरण करके जिस कुल ने बदनामी, अपकीर्ति एवं कुसंस्कारिता प्राप्त की हो वह नीच कुल हैं। जैसे कसाई, वेश्या, चोर आदि निम्न माने जाते हैं।
निम्न गोत्र में उच्च गोत्र कर्म बंध के कारण :
1. गुणानुरागी :- गुणों के प्रशंसक अर्थात् दूसरों के दोषों को अनदेखा करके मात्र उनके गुणों को ही देखना। 2. मद रहित :- जाति, कुल, ज्ञान, बल आदि आठ प्रकार के मदों से रहित नम्रता एवं विनय से जीवन जीना। 3. अध्ययन एवं अध्यापन की रूचि वाला :- सदैव सत्साहित्य के पढ़ने वाला और पठन की शक्ति नहीं होने पर पढने-पढ़ाने वालों की सेवा करने वाला, अनुमोदन करने वाला तथा ज्ञानोपकरण प्रदान करने वाला उच्च गोत्र का बंध करता है। 4. जिन भक्ति आदि :- अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु-साध्वी माता-पिता और गुणीजनों की भक्ति करने वाला उच्च गोत्र प्राप्त करता है। । नीच गोत्र बंध के कारण :
जिन कार्यों से उच्च गोत्र का बंध होता है, उनसे उल्टे कार्यों को करने से जीव नीच गोत्र कर्म का बंध करते हैं। अर्थात् 1. दूसरों की निंदा, स्वयं की प्रशंसा करने से। 2. दूसरों के दुर्गुणों का प्रचार, स्वयं के दोषों को छिपाने से।।
सच्चीकमचन्यालीकारया
जिनदर्शन
मेरका आप
निम्बधीच कमीचन्छकी कारण
कुल-मद
मरीचि अपने कुल
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