SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गोत्र कर्म इस संसार में अमुक जाति-विशेष को उच्च माना जाता है, तो अमुक जाति-विशेष को नीच माना जाता है। यह ऊँच-नीच का भेद भी मूलत: कर्मकृत है। मनुष्य कृत नहीं है। जिस कर्म के उदय से आत्मा उच्च-नीच, पूज्य-अपूज्य, आदरणीय-अनादरणीय, प्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित जाति और कुल में जन्म धारण करती है उसे गोत्र कर्म कहते है। मातृपक्ष के वंश को जाति और पितृपक्ष के वंश को कुल कहते हैं। यह कर्म आत्मा के अगुरू-लघुता गुण को आच्छादित करता है। इस कर्म का प्रभाव केवल मनुष्य लोक में ही है ऐसा नहीं है, पशु, पक्षी, देव आदि योनि में भी इस | कर्म का प्रभाव होता है। पशु जाति में गाय, घोड़ा, हाथी, सिंह आदि श्रेष्ठ माने जाते हैं तो कुत्ता, गधा, सुअर आदि निम्न माने जाते हैं। पक्षियों में भी मोर, तोता, कौआ आदि में स्वभाव तथा गुणों का अन्तर पाया जाता | है। आम, केला आदि फलों में भी उत्कृष्ट-निकृष्ट का अन्तर दिखाई देता है। ककड़ी आदि सब्जियों में अच्छी-बुरी जाति का अंतर होता है। अच्छा बीज मिलना या अच्छे स्थान में पैदा होना अथवा इसके विपरीत बुरे बीज या स्थान का मिलना गोत्र कर्म पर निर्भर है। ऊँच-नीच का यह भेद संपूर्ण संसार में व्याप्त है। सभी देशों में, सभी क्षेत्रों में यह भेद मिलता है। यहां तक कि देव योनि में भी कुछ देव ऊँचे कुछ नीचे माने जाते हैं। ऊँची जाति के देव नीच जाति वाले देवों पर शासन करते हैं, उनसे काम करवाते हैं। मनुष्य समाज में भी एक आदमी सम्माननीय व्यवसाय करता | है, उसकी शिक्षा, व्यवहार, रहन-सहन, खान-पान समाज में सम्मान दृष्टि से देखा जाता है। एक आदमी गंदा रहता है, उसकी भाषा, व्यवहार, खान-पान सभी नीचे स्तर का रहता है। यह भेदभाव किसी धर्म विशेष या समाज विशेष का नहीं है बल्कि कर्म विशेष का है। जैन धर्म का कर्म सिद्धान्त कहता है, गोत्र कर्म के कारण से कोई नीची मानी जाने वाली जाति में जन्म लेकर भी अपना सत्कर्म, सदाचार, ज्ञान, सुशिक्षा, सद्व्यवहार तथा तप, त्याग आदि सद्गुणों के कारण श्रेष्ठ व सम्मानीय बन सकता है। जैसे :- हरिकेशबल मुनि चांडाल कुल में जन्म लेकर भी अपनी तपस्या और संयम के कारण देवों के भी पूजनीय बन गये तथा कंस व दुर्योधन जैसे व्यक्ति उच्च कुल में जन्म लेकर भी अपने दुराचार व दुर्भावों के कारण मानवता के कलंक कहलाए। गोत्रकर्म का स्वभाव सुघट और दुर्घट अर्थात् अच्छे-बुरे घड़े के समान होने से इस कर्म की तुलना कुम्हार से की गई हैं। जैसे कुम्हार अनेक प्रकार के घड़ों का निर्माण करता है। उनमें से कुछ घड़े बनने से पूजनीय है। ऐसे होते हैं जिनको लोग शुभ कलश मानकर अक्षत्, चंदन आदि से उसको पूजते हैं तो कुछ घड़े ऐसे होते है जो मदिरा आदि रखने के काम में आते हैं इस कारण निम्न माने जाते हैं। वैसे ही गोत्र शराब कर्म जीवात्मा को उच्च या नीच कुल में जन्म धारण कराता है। गंगाजल भरा घड़ा मंगल कलश काभकारछोटो बडे बर्ततावदाताहता विसही घोराकर से ही प्राणी ऊचनीवावरत हो शराब भरा घड़ा निंदनीय है। Poooooo rs601
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy