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जगचिंतामणि अवरविदेहि तित्थयरा
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तीर्थकर
चिहुं दिस विदिसि चारों दिशा और विदिशाओं में। अनागत और भूत, भविष्यत तथा वर्तमानकाल में प्रादुर्भूत। सत्ताणवइ सहस्सा :- सत्ताणवे हजार (97,000)।
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अवर :- अन्य (तीर्थंकर)। विदेहिं महाविदेह क्षेत्र में तित्थयरा जि के वि जो कोई भी ती आणागय संपइय अतीत बंदु जिण सव्वेवि :- सब जिनों को वंदन करता हूँ। लक्खा छप्पन छप्पन लाख (56,00,000)। अट्ठ कोडीओ :- आठ करोड (8,00,000,00) 1
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बत्तीस सय :बत्तीस सौ (3200) बासीयाई बयासी (82) तिअलोए तीनों लोक में। चेइए चैत्य जिन प्रासादों को वंदे मैं वंदन करता हूँ। पन्नरस कोडि सवाई पंद्रहसौ करोड (15000000000) कोडी वायाल : बयालीस करोड (42,00,000,00) 1 लक्ख अडवन्ना: अट्ठावन लाख (5800000) 1 छत्तीस सहस: छत्तीस हजार ( 36000)। असीइं
अस्सी (80) | सासय बिंबाई:- शाश्वत बिम्बों को पणमामि मैं प्रणाम करता हूँ ।
(जकिचि नामतित्थं) (जावति चेइयाई)
भावार्थ:- जगत् में चिंतामणिरत्न समान। जगत् के स्वामी! जगत् के गुरु जगत् का रक्षण करनेवाले जगत् के निष्कारण वन्धु ! जगत् के उत्तम सार्थवाह ! जगत् के सर्व भावों को जानने में तथा प्रकाशित करने में निपुण ! अष्टापद पर्वतपर (भरत चक्रवर्तीद्वारा) जिनकी प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं ऐसे ! आठों कर्मों का नाश करनेवाले तथा अबाधित (धारा प्रवाह से) उपदेश देने वाले ! हे ऋषभादि चौबीसों तीर्थंकरों । आपकी जय हो ।
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कर्मभूमियों में पांच भरत, पांच ऐरावत और पांच महाविदेह में विचरण करते हुए वज्र ऋषभ नाराच संघयण वाले जिनों की संख्या अधिक से अधिक एक सौ सत्तर की होती है, सामान्य केवलियों की संख्या अधिक से अधिक नौ करोड की होती है और साधुओं की संख्या अधिक से अधिक नौ हजार करोड अर्थात् नब्बे अरब की होती हैं वर्तमान काल में तीर्थंकर बीस है, केवलज्ञानी मुनि दो करोड है और श्रमणों की संख्या दो हजार करोड अर्थात् बीस अरब है जिनका कि नित्य प्रातः काल में स्तवन किया जाता है।
हे स्वामिन आपकी जय हो
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जय हो शत्रुंजय पर स्थित हे ऋषभदेव उज्जयंत (गिरनार) पर विराजमान हे प्रभो नेमिजिन सांचोर के श्रृङ्गाररूप हे वीर भरुच में बिराजित हे मुनिसुव्रत । मथुरा में विराजमान, दुःख और पाप का नाश करनेवाले हे पार्श्वनाथ ! आपकी जय हो, तथा महाविदेह और ऐरावत आदि क्षेत्रों में एवं चार दिशाओं और विदिशाओं में जो कोई तीर्थंकर भूतकाल में हो गये हो, वर्तमानकाल में विचरण करते हो और भविष्य में इसके पश्चात होनेवाले हो, उन सभी को मैं वंदन करता हूँ। तीन लोक में स्थित आठ करोड सत्तावन लाख, दो सौ बयासी (8,57,00,282) शाश्वत चैत्योंका मैं वंदन करता हूँ। तीन लोक में विराजमान पंद्रह अरब, बयालीस करोड, अट्ठावन लाख, छत्तीस हजार अस्सी (15,42,58,36080) शाश्वत जिन बिम्बों को मैं प्रणाम करता हूँ।
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