________________
जगनाह
जगह नाह:-जगत् के स्वामी।
जगरक्रवण
* जगचिंतामणि - सुत्तं * जगचिंतामणि ! जगहनाह ! जग गुरु ! जग रक्खण ! जग बंधव ! जग - सत्थवाह !
जग भाव विअक्खण ! जगचिंतामणि
अट्ठावय संठविय रुव ! कम्मट्ठ विणासण !
चउवीसं पि जिणवर ! जगचिंतामणि :जगत् में चिंतामणि रत्न समान। जयंतु अप्पडिहय - सासण ! ||1||
कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं पढमसंघयणि, उक्कोसय सत्तरिसय, जिणवराण विहरंत लब्भइ, नवकोडिहिं केवलीण, कोडिसहस्स नव साहु गम्मइ।
जग-रक्खण:- जगत् का रक्षण करनेवाले। संपइ जिणवर वीस मुणि,
विहुं कोडिहिं वरनणी, समणह कोडि सहस्स, दुअ, जग - गुरु :- समस्त जगत् के गुरु। जगवाव
थुणिज्जइ निच्च विहाणि ||2|| जयउ सामिय ! जयउ सामिय ! रिसह सत्तुंजि, उज्जिति पहु - नेमिजिण !
जयउ वीर ! सच्चउरि मंडण ! जग बंधव :- जगत के बंधु
जग सत्थवाह :- जगत के इष्ट स्थल पर भरुअच्छहिं मुणिसुव्वय !
(मोक्ष में) पहुंचानेवाले जगत् के उत्तम सार्थवाह। महुरि पास ! दुह - दुरिअ - खंडण अवर विदेहिं तित्थयरा, चिहुं दिसि विदिसि जिं के वि, तिआणागय - संपइय, वंदुउं, जिण सव्वे वि ।।3।।
सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खा छप्पन्न अट्ठकोडिओ। जगभावबियक्रवण बत्तीस सय बासीयाई, तिअलोए चेइए वंदे ।।4।। जग भाव विअक्खण :जगत के सर्वभावों को जानने में तथा पन्नरस कोडि सयाई, कोडी बायाल लक्ख अडवन्ना। प्रकाशित करने में निपुण। छत्तीस सहस असीइं, सासय बिंबाइं पणमामि।। ।।5।।
अट्ठावय संठविय रुव :
अष्टापद पर्वत पर जिनकी प्रतिमाएँ स्थापित की हुई है ऐसे।
जमगुरु
जगवन्नाव
RELEB
महानवसनियरूवा काबीन चिनि
RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRettes
RRRRRRRRRBees
RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRROS
84