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* आयुष्य कर्म * इस संसार में एक मनुष्य सौ वर्ष जीता है, तो एक मनुष्य जन्मते ही मर जाता है। कोई चढती जवानी में मरता है, तो कोई वृद्धावस्था में मर जाता है। यह देखकर जिज्ञासा हो जाती है कि जीवन और मृत्यु का
कोई निर्णायक तत्व अवश्य होना चाहिए। कर्म - सिद्धांत के अनुसार इस जिज्ञासा का समाधान कराने वाला तत्व है आयुष्य कर्म, जो जीवन धारण करने की अवधि का नियामक है।
आयुष्य कर्म के अस्तित्व से प्राणी जीवित रहता है और इसके क्षय होने पर मृत्यु का आलिंगन करता है। देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरक इन चार गतियों में से किस आत्मा को कितने काल तक अपना जीवन वहां बिताना है या उस नियत शरीर से बद्ध रहना है, इसका निर्णय आयुष्य कर्म करता है।
जिस कर्म के उदय से जीव निश्चित काल (जीवन काल) की पूर्णता से पहले मृत्यु प्राप्त नहीं कर सकता है उसे आयुष्य कर्म कहते हैं। ___ आयुष्य कर्म का स्वभाव काराग्रह के समान है। जैसे अपराधी को अपराध के अनुसार अमुक काल तक कारागृह में डाला जाता है,
और अपराधी उससे छुटकारा पाने की इच्छा भी करता है, किंतु अवधि पूरी हुए बिना निकल नहीं पाता है, उसे निश्चित समय तक वहां रहना पडता है, वैसे ही आयुष्य कर्म के कारण जीव को निश्चित अवधि तक नरकादि गतियों में रहना पढता है जब बांधी हुई आयु भोग लेता है, तभी उसे उस से छुटकारा मिलता है।
आयुष्य कर्म का कार्य जीव को सुख - दुःख देना नहीं है, परंतु नियत अवधि तक किसी एक शरीर में बनाये रखने का है, नरक गति के नारकी पल - पल मौत की इच्छा करते हैं, परंतु जब तक आयुष्य कर्म पुरा न हो, तब तक वे मर नहीं सकते। वैसे ही उन मनुष्य और देवों को जिन्हें विषय - भोगों के साधन प्राप्त है और उन्हें भोगने के लिए जीने की प्रबल इच्छा रहते हुए भी आयुष्य कर्म के पूर्ण होते ही परलोक सिधारना पडता है। अर्थात् आयुष्य कर्म के अस्तित्व से जीव अपने निश्चित समय प्रमाण अपनी गति एवं स्थूल शरीर का त्याग नहीं कर सकता है और क्षय होने पर मरता है, यानी समय पूरा होने पर उस स्थूल शरीर में नहीं रह सकता है।
* आत्मा आयुष्य कर्म कब बांधती है ? * इस संसार में चार प्रकार के जीव है - देव, नारकी, तिर्यंच और मनुष्य। देवों और नारकों का आयुष्य उनकी छः महीने की आयु शेष रहने पर बंध जाती है। मनुष्य और संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय का आयुष्य इस नियम से है - वर्तमान जन्म की निश्चित आयु को तीन भागों में बांटने पर इनमें से दो भाग बीत जाने के बाद जो शेष रहे उस एक भाग में अगले जन्म की आयु बंध सकती है। यदि उस समय आयु न बंधे तो शेष रहे एक भाग को तीन हिस्सों में बांटने पर उनमें से दो भाग बीत जाने के बाद जो शेष बचे उस एक हिस्से में आयु बंधती है। यो करते - करते अंतिम अन्तर्मुहुर्त में आयुष्य अवश्य ही बंधती है। उदाहरण के तौर पर मान लिजिए, किसी व्यक्ति का वर्तमान जन्म का आयुष्य नब्बे वर्ष का है। तो साठ वर्ष व्यतीत हो जाने पर
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