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संज्वलन लोभ
संज्वलन लोभ हल्दी के रंग के समान है जैसे वस्त्र पर लगा हुआ हल्दी का रंग सहज में उड जाता है, उसी प्रकार जो लोभ विशेष प्रयत्न किये बिना तत्काल अपने आप दूर हो जाता है वह संज्वलन लोभ है।
इस प्रकार साधक क्रमशः समस्त कषायों का क्षय करता हुआ अकषाय/वीतराग अवस्था को प्राप्त होता है।
इन कषाय को चार्ट द्वारा सरलता से समझ सकते हैं :
चार कोटी के कषाय
अप्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी संज्वलन स्वरुप
आत्मा का अनंत काल आत्मा पापों से | साधु धर्म की केवलज्ञान में बाधक
संसार में परिभ्रमण विरक्त नहीं हो पाती प्राप्ति नहीं होती क्रोध
पर्वत की रेखा जमीन की रेखा रेत पर रेखा पानी पर रेखा मान पाषाण स्तम्भ
शरीर की हड्डी लकडी स्तम्भ बांस की बेंत माया बांस की जड
भेढ के सींग | बैल की मूत्र धारा बांस की छाल लोभ
किरमिची रंग | पहिये का कीचड काजल का दाग हल्दी का दाग काल मर्यादा आजीवन -
एक वर्ष तक | चार मास तक 15 दिन तक गुण - घात सम्यक्त्व गुण
देश विरति गुण सर्व विरति गुण वीतरागता गुण गति बंध नरक गति
तिर्यंच गति | मनुष्य गति देव गति
* नो कषाय मोहनीय * चारित्र मोहनीय का दूसरा प्रकार नोकषाय मोहनीय है। यहां नो शब्द का अर्थ नो (9) नहीं है, इसका अर्थ अल्प अथवा सहायक है। जो कषाय तो न हो, किंतु कषाय के उदय के साथ जिसका उदय होता है अथवा कषायों को पैदा करने में, उत्तेजित करने में सहायक हो उसे नोकषाय कहते हैं। यह नौकषाय पूर्वोक्त सोलह कषाय के सहचारी है। पूर्वोक्त कषाय का क्षय होने के बाद नोकषाय भी नहीं रहते । कषायों का क्षय होते ही इनका भी क्षय होने लग जाता है। अथवा नोकषाय का भी उदय होने पर कषायों का भी उदय अवश्य होता है। इनके नौ भेद हैं। 1. हास्य :- जिसके उदय से सकारण या अकारण हंसी आवें। हंसना एक क्रिया है। इस क्रिया में भाव अनेक होते हैं। व्यक्ति कभी मानवश किसी का उपहास करता है, कभी किसी को हंसाने के लोभ में स्वयं को मजाक बनाता है। द्रौपदी को हंसी आई थी दुर्योधन पर। जब स्थल को जल समझकर दुर्योधन फिसल गया था।
सत्यधर्म का उपहास एवं हंसी मजाक से हास्य मोहनीय कर्म बंध होता है। 2. रति :- जिसके उदय से इष्ट पदार्थ के प्रति राग - आनंद हो। राग की तीव्रता से रति मोहनीय कर्म का बंध होता
है। महाशतक की पत्नी रेवती ने पौषध व्रत धारक पति को रीझाने के लिए कितनी क्रीडाएं की किंतु सफल नहीं हुई। 3. अरति :- अरुचि या उपेक्षा भाव होना। कण्डरिक मुनि की रस लोलुपता इतनी अधिक हो गई थी
कि संयमी जीवन से अरति हो गयी। पाप में रुचि एवं संयम में अरुचि उत्पन्न करने वाली प्रवृत्ति से हंसी उड़ाना
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