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________________ बहुबीज * मन विकार ग्रस्त, तामसी बनता है। * शरीर रोगों का केन्द्र बनता है। * काम, क्रोध उन्माद बढता है। * अशाता वेदनीय कर्मों का बंध होता है। * नरकादिदर्गति का आयष्य बंध होता है। * जैन दर्शन की दृष्टि के प्रकाश से 22 अभक्ष्य :- अनंत उपकारी, अनंत करुणा के सागर श्री जिनेश्वर परमात्मा ने स्वयं के निर्मल केवलज्ञान के प्रकाश से हमारे समक्ष आहार विज्ञान का सूक्ष्म विवेचन किया है, जो इस चार्ट द्वारा दर्शाया गया है। * त्यागने योग्य पदार्थ - 22 अभक्ष्य * 4 - संयोगिक अभक्ष्य 4 - महाविगई | 32 - अनंतकाय | 4 - फल 5 - गुलर फल 4- अनउपयोगी द्विदल मांस साग (9) बड फल बरफ चलितरस मदिरा औषध (5) बैंगन पीपल फल ओले आचार शहद भाजी (5) तुच्छफल पीलंखन फल मिट्टी रात्रिभोजन मक्खन जंगली (6) अन्जान फल उदुंबर फल जहर बेल (7) कलुबर फल * चार संयोगिक अभक्ष्य :I. द्विदल अभक्ष्य :- जिसमें दो दल, दो विभाग हो ऐसे धान्य को द्विदल कहते हैं। * व्याख्या : 1. जो वृक्ष के फलरुप न हो। . 2. जिसको पीलने से तेल न निकले। 3. जिसको दलने पर दाल बने। 4. जिसके दो भागों के बीच पड न हो ऐसे धान्य जैसे मूंग, मसुर, उडद, चना, मोंठ, चौला, वटाना, मेथी की दाल आदि। इन सबकी हरी पत्ती एवं हरे दाने उनका आटा सभी द्विदल कहलाते हैं। राई, सरसों, तिल और मूंगफली में से तेल निकलता है। इसलिए वे द्विदल नहीं कहलाते। * द्विदल त्याग का कारण :- उपरोक्त चारों लक्षणों से युक्त सभी धान्य एवं धान्य से बनी हुई चीज कच्चे दही, दूध व छास के साथ मिलने पर तत्काल बेइन्द्रिय जीव की उत्पत्ति होती है। इस मिश्रण के भक्षण से जीव हिंसा का महादोष लगता है और साथ ही आरोग्य भी बिगडता है। श्री दहावड़ा 1 कच्ची छाछ। श्राद्धवृत्ति और संबोध प्रकरण में द्विदल कच्चा दूध लिखा है कि सभी देशों के सदैव गोरस से युक्त समस्त दलहनों (द्विदल) में अति सूक्ष्म पंचेन्द्रिय जीव तथा निगोद के जीव उत्पन्न होते हैं। दहावडा दही वाला मगदान al ter mine RRRRRRRRRRRRRRRRRI Fresh 46 wwwaneerary.org
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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