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________________ * द्विदल से बचने का उपाय :- यदि कढी, रायता, दही वड़ा आदि बनाने हेतु कच्चा दूध, दही कठोल के साथ मिश्रित करना पड़े तो उसे अच्छी तरह गरम करने पर द्विदल का दोष नहीं लगता। * द्विदल का दोष कहां लगता है :___ 1. दही वडा :- वडा मूंग, उडद आदि की दाल से बनता है। उसके बाद उस पर फ्रीज में से निकाला हुआ ठण्डा दही डालते हैं। यह दही और वडे का संयोग होने मात्र से तत्काल असंख्य बेइन्द्रिय जीव उत्पन्न हो जाते हैं। यह बैक्टेरिया चीज जैसे ही होती है, वैसे ही कलर के अतिसूक्ष्म कीडे के रुप उत्पन्न होते हैं। परमात्मा जिनेश्वर देव तो केवलज्ञान के स्वामी थे. उन्होंने अपने ज्ञानप्रकाश में जो जीवोत्पत्ति देखी है उसे बताया है। इस पर निश्कारण संदेह किये बिना उसे मस्तक झुकाकर स्वीकारना चाहिए। इस स्थान पर दही को वडे के साथ मिलाने से पहले अच्छी तरह से गरम करके उपयोग में ले। गरम करने के बाद खाते वक्त यदि वह ठंडा हो जाए तो हर्जा नहीं क्योंकि एकबार गरम करने के बाद फिर उसमें जो जीवात्पादक शक्ति थी, वह नष्ट हो जाती है। 2. रायता :- दही का रायता अनेक प्रकार से बनता है, इसमें जब कठोल चनादाल के आटे की बनी बूंदी मिक्स करते हैं तो द्विदल का दोष लगता है। कठोल के साथ मिक्स करने से पहले दहीं को उबाल ले तो दोष नहीं लगता। 3. मेथी के पराठे :- मेथी और मेथी की भाजी दोनों कठोल की गिनती में आती है। आजकल महिलाएं मेथी के पराठे बनाने बैठती है, तो द्विदल की बात बिलकुल भूल जाती है। थाली में गेहूँ बाजरे के आटे को मिलाकर फिर उसमें मेथी के पत्ते मिला देती है और फिर उसमें कच्छी छास डालकर उसे बहनें गूंथ लेती है। इस वक्त उन्हें यह ख्याल नहीं आता की तुम्हारे इस गूंथे हुए आटे में पूरे चेन्नई में न समाए इतने सूक्ष्म बेइन्द्रिय जीव पैदा हो गए है। वे तुम्हारे दोनों हाथों से मसले जा रहे हैं। थोडे समय बाद तुम उन्हें मौत की घाट (गरम तवे पर) पर उतारने वाली हो। 4. कढी :- जब छास की कढी बनानी हो, तब बहनें चूले पर छास तपेली में चढाकर गरम होने के पूर्व ही उसमें तुरंत बेसन डाल देती है। कच्ची छास में बेसन मिलते ही तत्काल असंख्य जीव पैदा हो जाते हैं। फिर जब कढी उबलती है तब वे जीव तपेली में ही स्वाहा हो जाते हैं। इस तरह जीवों की उत्पत्ति और संहार दोनों का दोष एक साथ होता है। इसलिए गरम होने से पूर्व बेसन डालने की जल्दी न करें। बघार में मेथी का उपयोग भूलकर भी न करें। दही गरम करने के बाद करें। 5. ढोकला :- खट्टे ढोकले बनाने के लिए कठोल के आटे का छास में घोल करते हैं। ये घोल करने के पहले छास को गरम कर लेना चाहिए। छास को गरम किये बिना सीधा आटा मिला दे तो द्विदल का दोष लगता है। 6. दहीं और मेथी के पराठे :- बाहरगाँव जाना हो तब व्यक्ति साथ में मेथी के पराठे ले जाता है। पराठे चाय के साथ उपयोग आये तब तो ठीक है, परंतु कई व्यक्ति पराठे के साथ दही खाते हैं, तब उन्हें यह ख्याल नहीं होता है कि पराठे के अंदर मेथी की भाजी डाली है। कच्चे दही के साथ मेथी का संयोग होगा तो असंख्य जीव उत्पन्न होंगे। इस कारण मेथी के पराठे के साथ दहीं न खाये। दहीं को गरम कर लेना जरुरी है, नहीं तो चाय के साथ पराठे खाये अथवा बिना मेथी और कठोल के पराठे बनाये। aaaaaaaaaaaaaaaa 47
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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