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________________ अपरकका लवण समुद्र W शाश्वत सूर्य विमान चन्द्र विमान शंखनाद के बारे में पूछा तो भगवान मुनिसुव्रत श्री कृष्ण वासुदवे 5-शंख ध्वनि स्वामी ने श्री कृष्ण वासुदेव के बारे में बताते हुए कहा कि एक ही क्षेत्र में एक समय में दो तीर्थंकर, दो चक्रवर्ती, दो बलदेव और दो वासुदेव नहीं होते हैं। यह सुनकर कपिल वासुदेव को श्री कृष्ण वासुदेव से मिलने की तीव्र इच्छा जाग्रत हुई। वह सीधे समुद्र तट पर पहुँचा। परंतु श्री कृष्ण वहां से जा चुके थे। दूर जाते उनको देखकर उन्होंने शंखनाद करके मिलने की इच्छा प्रकट की। प्रत्युत्तर में श्री कृष्ण ने वापस शंखनाद करके अपने बहुत दूर निकल आने पर वापस लौटने में असमर्थता जताई। यों शंखनाद के माध्यम से दोनो का मिलन हो गया। यह अच्छेरा हुआ। KATOR 6. सूर्य और चन्द्र एक साथ अपने शाश्वत विमानों में आना :- कौशाम्बी नगरी में विराजित भगवान महावीरस्वामी के समवसरण में सूर्य और चन्द्र देव अपने - अपने शाश्वत विमानों सहित भगवान को वंदन - दर्शन के लिए आये। सूर्य और चंद्र देव का शाश्वत विमानों सहित आना एक आश्चर्य है। अन्यथा वे उत्तर वैक्रिय विमानों में ही आते हैं। 7. हरिवंश कुल की उत्पत्तिः- सौधर्म देवलोक के हरिवंश कल किल्विष देव ने हरिवर्ष क्षेत्र से हरि नाम के पुरुष युगल की उत्पत्ति का अपहरण कर लिया और भरत क्षेत्र की चंपा नगरी में ले आया। वहां के राजा चंद्रकीर्ति की मृत्यु हो गई थी। किल्विष देव ने देववाणी की। उसे सुनकर वहां के मंत्री आदि ने हरि को अपना राजा बना दिया। हरि राजा बना, शादी की। उससे हरीवंश कुल की उत्पत्ति हुई। दोनों मरकर नरक में गये, युगलियां मरकर केवल देवगति में ही जाते हैं, और ये नरक में गये, इसलिए इसे अच्छेरा माना गया। 8. चमरेन्द्र का सौधर्मकल्प में जाना :- असुरों की नगरी चमरकंका के इन्द्र चमरेन्द्र ने एक बार अपने अवधिज्ञान से सौधर्मावतंसक विमान में सौधर्मेन्द्र को देखा तो क्रोधित होकर सोचने लगा "यह सौधर्मेन्द्र मेरे सिर पर बैठा है, इसे सबक सिखाना चाहिए।" वह उससे युद्ध करने सौधर्मकल्प की ओर चल दिया। सौधमेन्द्र की सभा में पहुंचकर उसने अपने शस्त्र से सौधर्मेन्द्र पर प्रहार किया, सौधमेन्द्र ने भी प्रतिकार में वज्र फैंका। चमरेन्द्र वज्र से डरकर भागता हुआ सीधा भगवान महावीरस्वामी के पास आया, भगवंत के पैरों के पास जाकर छिप गया। सौधर्मेन्द्र ने जब ध्यानस्थ भगवान को देखा तो वज्र को वापस खींच लिया, और भगवान को वंदन कर चमरेन्द्र से बोला " भगवान की कपा से तम बच गये | जाओ अब तम मक्त हो। भय मत करो | " यह कहकर लौट गया। चमरेन्द्र बच गया। चमरेन्द्र का सौधर्मकल्प में प्रवेश करना एक आश्चर्य है। सौधर्म कल्प में चमरेन्ट RRRAIMIRRORARA...] leaton international For Persona al Use Only 21 www.jainelibrary.org
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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