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________________ ASEANIHINJR मा यीशालकका उपसर्ग * दस अच्छेरे (आश्चर्य) * ऐसी घटनाएं जो कभी कभी घटती है, सामान्य रुप से सदा नहीं बनती। किंतु किसी विशेष कारण से अनंतकाल के पश्चात् होती है, उसे आश्चर्य (अच्छेरा) कहा जाता है। इस अवसर्पिणी काल में हुए आश्चर्यों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। 1. उपसर्ग :- अत्यंत पुण्यशाली आत्मा ही तीर्थंकर पद को प्राप्त करती है। केवलज्ञान होने के पश्चात् तीर्थंकरों को कभी कोई उपसर्ग नहीं होते ! परंतु भगवान महावीरस्वामी को केवलज्ञान होने के बाद भी कुशिष्य गोशाले ने तेजोलेश्या फेंकी, जिससे भगवान को भी छः महीने तक तेजोलेश्या की ज्वाला से रक्त अतिसार (खून की दस्ते) लगने लगी। 2. गर्भ संहरण :- आषाढ शुक्ल छ8 को भगवान महवीरस्वामी स्वर्ग से च्यवकर देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षी में आये । गर्भ अवतरण के 82 दिन पश्चात् 2-गर्भ संहरण सौधर्म कल्प के इन्द्र के आदेश से सेनापति हरिनैगमेषी देव ने उनको माता देवानन्दा के गर्भ से संहरण कर त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में रख दिया, क्योंकि तीर्थंकर सदैव ही उग्र, भोग, क्षत्रिय, इक्ष्वाकु, ज्ञात, कौरव्य और हरिवंश आदि विशाल कुलों में ही जन्म लेते हैं। यह दूसरा अच्छेरा हुआ। 3. स्त्री तीर्थंकर :- ऐसा नियम है KAR 3-स्त्री तीर्थकर कि तीर्थंकर पद परुषों को ही प्राप्त होता है। परंतु मिथिला नगरी के राजा कुम्भराज की पुत्री मल्लीकुमारी ने तीर्थंकर पद को प्राप्त किया। वे इस अवसरर्पिणी के 19वें तीर्थंकर के रुप में प्रसिद्ध हुई। स्त्री का तीर्थंकर होना एक आश्चर्य है। 4. अभावित परिषद् :- यानी तीर्थंकर की देशना निष्फल होना। 4-अभावित परिषद केवलज्ञान होने के बाद वैशाख शक्ल दशमी के दिन भगवान महावीर स्वामी ने अपनी प्रथम धर्म देशना दी। देशना सुनकर किसी भी श्रोता ने चारित्र ग्रहण नहीं किया। तीर्थंकरों की देशना कभी निष्फल नहीं जाती, यह एक अभूतपूर्व घटना हुई। 5. श्री कृष्ण वासुदेव का घातकी खण्ड की अमरकंका नामक नगरी में गमन :- राजा पद्मनाभ घातकी खण्ड में स्थित अमरकंका नगरी का राजा था। नारद द्वारा द्रौपदी के रुप लावण्य की प्रशंसा सुनकर उसने देवों द्वारा द्रौपदी का अपहरण करवा लिया। श्री कृष्ण वासुदेव को पता चला तो वे अमरकंका नगरी पहुँचे और युद्ध में राजा पद्मनाभ को हराकर द्रौपदी को वापस द्वारका की ओर ले चले। संग्राम विजयी होने पर उन्होंने शंखनाद किया। उस शंख की आवाज सुनकर वहां के कपिल वासुदेव को आश्चर्य हुआ, जिससे उसने वहां विचरते हुए भगवान मुनिसुव्रत स्वामी से daiodicatonanternationary FORTSTER& Valenty | 20 www.jainelibrary.org
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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