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________________ re एक समय एक सौ आठ 9. उत्कृष्ठ अवगाहाना वाले एक सौ आठ सिद्ध नहीं केवली सिद्ध होते :- इस अवसर्पिणी काल के सुषमा - दुषमा नामक तीसरे आरे में भगवान ऋषभदेव अपने 99 पुत्रों एवं 8 पौत्रों के साथ मोक्ष में पधारें। वे एक साथ एक सौ आठ जीव (99 पुत्र आठ पौत्र एवं स्वयं भगवान ऋषभदेव) सिद्ध हुए। उत्कृष्ठ अवगाहना में एक साथ दो ही व्यक्ति सिद्धगति प्राप्त कर सकते हैं। परंतु एक साथ 108 व्यक्ति सिद्धगति को प्राप्त किये वह आश्चर्य है। 10. असंयतियों की पूजा :- नौवें तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ भगवान के निर्वाण के कुछ समय पश्चात् साधु परंपरा का असंयति पूजा विच्छेद हो गया। लोगों ने स्थविर श्रावकों को ही धर्म का ज्ञाता समझ लिया। वे श्रावक अपनी अल्प बुद्धि अनुसार धर्म की अलग अलग व्याख्या करने लगे। लोग इन श्रावकों को ही ज्ञानी समझकर इनकी पूजा करने लगे, दान देने लगे। पूजा - प्रतिष्ठा से इनके मन में अभिमान उत्पन्न हो गया और वे धर्म के नये - नये नियम रचने लगे। सोना, चांदी, गौ, कन्या, हाथी, घोडा, आदि दान में लेने लगे। धर्म के नाम पर पाखण्ड चलने लगा। हमेशा संयति ही पूजे जाते हैं, मगर इस अवसर्पिणी काल में असंयतिओं की भी पूजा हुई है, यह अच्छेरा हुआ। उपयुक्त दस अच्छेरे निम्नलिखित तीर्थंकरों के शासन काल में हुए हैं :1. उत्कृष्ट अवगाहाना वाले एक सौ आठ एक समय में सिद्ध हुए - श्री आदिनाथ भगवान के तीर्थ में 2. हरिवंशकुल की उत्पत्ति - श्री शीतलनाथ भगवान के तीर्थ में 3. श्री कृष्णवासुदेव का अमरकंका में जाना - श्री नेमिनाथ भगवान के तीर्थ में ___4. स्त्री का तीर्थंकर होना - श्री मल्लिनाथ भगवान के तीर्थ में 5. असंयतियों की पूजा - श्री सुविधिनाथ भगवान के तीर्थ में 6. शेष :- उपसर्ग, गर्भसंहरण, अभावित परिषद्, सूर्यचंद्र का मूल विमान से उतरना, चमरेन्द्र का उर्ध्व गमन ये ___पांच अच्छेरे श्री महावीर स्वामी के तीर्थ में हुए हैं। ................. For reso n ate Use Only www.jainelibrary.org 22
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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