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ने बाहुबलि के सिर पर जोर से मुष्टि प्रहार किया। बाहुबलि घुटनों तक जमीन में धंस गये। फिर बलपूर्वक निकलकर भरत को मारने के लिए मुष्टि उठाकर बाहुबली दौडे। भरत, भयभीत होकर चक्र छोडा, परंतु बाहुबली समान गोत्रीय होने से वह चक्र भी कुछ न कर सका। बाहुबली को छू कर वापिस भरत के हाथ में आ गया, तब भरत मन में अति खेदातुर हुआ और रोषित बाहुबली
को आता हुआ देखकर विचार में पड गया कि क्या कोई ये नवीन चक्रवर्ती है ? क्या मेरी समग्र ऋद्धि छीन लेगा। ऐसा विचार कर रहा था कि इन्द्र और देवों ने यह घोषणा कर दी कि तमाम युद्धों में बाहुबली जीते और
भरत हारे। बंधी हुई मुट्टी से मारने को आते हुए बाहुबली ने चित्त
में विचार किया कि 'अहो ! मेरे पिता तुल्य मेरे बडे भाई को मारना मेरे लिए अनुचित है, “लेकिन यह उठाई हुई मुट्टी भी व्यर्थ कैसे हो सकती है ?| ऐसा सोचकर बाहुबलि ने उस मुट्टी से उसी समय अपने सिर के बालों का लोचन कर डाला और वहीं पर चारित्र भी ग्रहण कर लिया। उसी समय भरत महाराजा उन्हें वंदन करके अपने अपराध को खमाकर अपने स्थान में लौटे।
अब बाहुबली मुनि विचार करने लगे कि “पूर्व दीक्षित मेरे छोटे भाई दीक्षा पर्याय में मेरे से बड़े हैं ! यदि मैं अभी प्रभु के पास जाऊँगा तो उन छोटे भाईओं को भी वंदन करना पडेगा। मैं बड़ा होकर के छोटे भाईओं को वंदन कैसे करूं ? इसलिए जब केवलज्ञान होगा तभी ही प्रभु के पास जाऊँगा।
ऐसा अभिमान करके एक वर्ष तक काउसग्ग में खडे रहे।
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