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प्ररुपणा की हो। उम्मगो, अकप्पो, अकरणिज्जो
जिनेन्द्र प्ररुपित मार्ग से विपरीत उन्मार्ग का कथन किया व आचरण किया हो। अकल्पनीय नहीं करने योग्य कार्य किए हों,
ये कायिक वाचिक अतिचार है, इसी प्रकार। दुज्झाओ, दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो मन से कर्म बंध हेतु रुप दुष्ट ध्यान व किसी प्रकार का
खराब चिंतन किया हो। अनाचार सेवन किया व नहीं चाहने योग्य
की वांछा की हो। असावग पाउग्गो
श्रावक धर्म के विरुद्ध आचरण किया हो। नाणे तह दंसणे
ज्ञान तथा दर्शन एवं चरित्ताचरित्ते, सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं श्रावक धर्म, सूत्र सिद्धांत, सामायिक में तीन गुप्ति के गोपनत्व का। चउण्हं कसायाणं पंचण्ह मणुव्वयाणं चार कषाय के सेवन नहीं करने की प्रतिज्ञा का पांच अणुव्रत। तिण्हं गुणव्वयाणं चउण्हं सिक्खावयाणं तीन अणुव्रत, चार शिक्षा व्रत रुप। बारस्स विहस्स सावग धम्मस्स
बारह प्रकार के श्रावक धर्म का जम खंडियं जं विराहियं
जो मेरे देश रुप से खण्डन हुआ हो, सर्व रुप से विराधना हुई हो तो जो मे देवसिओ अइयारो कओ
जो मैंने दिवस संबंधी कोई अतिचार दोष किये हो तो। तस्स मिच्छामि दुक्कडं
वे मेरे दुष्कृत कर्म रुप पाप मिथ्या, निष्फल हो।
* आगमे तिविहे का पाठ * . आगमे तिविहे पण्णत्ते तं जहा
आगम तीन प्रकार का कहा गया है वह इस प्रकार है जैसे :सुत्तागमे, अत्थागमे, तदुभयागमे
सूत्र, रुप, अर्थ रुप आगम, दोनों (मूल अर्थ युक्त) रुप आगम इस तरह तीन प्रकार के आगम रुप ज्ञान के विषय में जो
कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं जं वाइद्धं वच्चामेलियं
जो इस प्रकार है। इन आगमों में जो कुछ क्रम छोड कर अर्थात् पद अक्षर को आगे पीछे करके पढा हो। एक सूत्र का पाठ अन्य
सूत्र में मिलाकर पढा गया हो। हीणक्खरं, अच्चक्खरं पयहीणं, विणयहीणं अक्षर घटा करके व बढा करके बोला गया हो, पद को कम
करके, विनयरहित पढा हो। जोगहीणं घोसहीणं सुट्टदिण्णं
मन वचन व काया के योग रहित पढा हो, उदात्त आदि के उचित
घोष बिना पढा हो, शिष्य की उचित शक्ति सेन्यूनाधिकज्ञान दिया हो। दुट्ठपडिच्छियं अकाले कओ सज्झाओ दुष्ट भाव से ग्रहण किया हो, अकाल में स्वाध्याय किया हो।
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