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________________ आना नहीं रहता ऐसा। सिद्धिगई - नाम धेयं :- सिद्धिगति नाम वाले। ठाणं :- स्थान को, मोक्ष को। संपत्ताणं :- प्राप्त किये हुओं को। णमो :- नमस्कार को। जिणाणं :- जिनों का। जिअ - भयाणं :- भय जीतने वालों का जे :- जो। अ :- और अईआ :- भूतकाल में, अतीतकाल में। सिद्धा :- सिद्ध हुए है। भविस्संति:- होंगे। अणागए :- भविष्य। काले :- काल में। संपइ :- वर्तमान काल में। वट्टमणा :- विद्यमान है। सव्वे :- उन सबको। तिविहेण :- त्रिविध, मन - वचन - काया से। वंदामि :- मैं वंदन करता हूँ। इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे देवसियं पडिक्कमणं । ठाएएमि देवसिय नाण दंसण चारित्ताचरित्त तव अइयार चिंतणत्थं करेमि काउस्सग्गं * प्रतिक्रमण सूत्र * इच्छामि णं भंते का पाठ हे भगवान ! मैं चाहता हूँ, यानी मेरी इच्छा है। इसलिए आपके द्वारा आज्ञा मिलने पर। दिवस संबंधी प्रतिक्रमण को। करता हूँव। दिवस संबंधी ज्ञान दर्शन श्रावक व्रत तप अतिचारों को चिंतन करने के लिए। कायोत्सर्ग करता हूँ। * इच्छामि ठामि का पाठ * मैं कायोत्सर्ग करना चाहता हूँ। जो मैंने दिवस संबंधी। अतिचार (दोष) सेवन किये हैं चाहे वे मन, वचन और काया संबंधी सूत्र सिद्धांत के विपरीत उत्सूत्र की इच्छामि ठामि काउस्सग्गं जो में देवसिओ अइयारो कओ काइओ, वाइओ, माणसिओ उस्सुत्तो frstudioreonaireninventosuruitmya 1031
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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