SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * शब्दार्थ * णमुत्थुणं :- नमस्कार हो धम्म सारहीणं :- धर्म रथ को चलाने में कुशल अरिहंताणं भगवंताणं :- अरिहंत भगवंतों को। सारथियों को। आइगराणं :- द्वादशांगी (श्रुतधर्म) की आदि करनेवाले को। धम्म वर चाउरंत चक्कवट्टीणं :- धर्मरुपी श्रेष्ठ चतुरन्त तित्थयराणं :- तीर्थंकरों को, चतुर्विध संघ की चक्रधारण करने वालों को, चार गतियों का नाश करने स्थापना करने वालों को। वाले तथा धर्मचक्र के प्रवर्तक उत्तम चक्रवर्तियों को। सयं - संबुद्धाणं :- स्वयं बोध प्राप्त किये हुओं को। __ दीवोत्ताणं :- संसार सागर में द्वीप केसमान आधारभूत पुरिसुत्तमाणं :- पुरुषों में ज्ञानादि गुणों से उत्तमों को। सरणगइपइट्ठाणं :- दुःखी प्राणियों को आश्रय पुरिस सीहाणं :- पुरुषों में सिंह समान निर्भयों को। देनेवाले और सद्गति में सहायक पुरिस वर पुंडरीयाणं :- पुरुषों में उत्त श्वेतकमल केसमान रहितों को। अप्पडिहय वरनाणं दंसण धराणं :- जो नष्ट न हो ऐसे पुरिस वरगंधहत्थीणं :- पुरुषों में सात प्रकार की श्रेष्ठ केवलज्ञान, केवलदर्शन को धारन करने वालों को। ईतियाँ दूर करने सर्वश्रेष्ठ वियट्ट - छउमाणं :- घाती कर्मों से रहित होने से गंधहस्ति सदृशों को। जिनकी छद्मस्थावस्था चली गई है उनको। लोगुत्तमाणं :- लोक में उत्तमों को। तिन्नाणं तारयाणं :- स्वयं संसार समुद्र से पार हो लोग नहाणं :- लोक के नाथों को। गये है तथा दूसरों को भी पार पहुंचानेवालों का। लोग हिआणं :- लोक का हित करनेवालों को। बुद्धाणं बोहयाणं :- स्वयं बुद्ध है तथा दूसरों को लोग पईवाणं :- लोक में दीपकों को। भी बोध देनेवालों का। मुत्ताणं मोअगाणं :- स्वयं मुक्त है और दूसरों को लोग पज्जोअगराणं :- लोक में अतिशय प्रकाश मुक्त करनेवालों का। करनेवालों को। सव्वन्नूणं ससव्वदरिसीणं :- सर्वज्ञों को, अभय दयाणं :- अभय प्रदान करनेवालों को। सर्व दर्शियों को। चक्खु दयाणं :- श्रुत्तरुपी चक्षु देने वालों को। सिवं :- शिव, उपद्रवों से रहित। मग्ग दयाणं :- धर्ममार्ग दिखलाने वालों को। मयल :- अचल, स्थिर, निश्चल सरण दयाणं :- शरण देनेवालों को। मरुअ :- रोग रहित, व्याधि और वेदना रहित बोहि दयाणं :- सम्यक्त्व देनेवालों को। मणंत :- अंत रहित। धम्म दयाणं :- धर्म का स्वरुप समझानेवालों को। मक्खय :- क्षय रहित। धम्म देसयाणं :- धर्म का उपदेश देने वालों का। मव्वाबाह :- कर्म जन्य बाधा पीडाओं से रहित। धम्म नायगाणं :- धर्म के नायकों को। मपुणरावित्ति :- जहां जाने के बाद वापिस Y Geeteeeeeeeeeeeeeeeeeeer a datitividiobidolititelmaitutnant .eeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee Personal 102 www.jainelibrary.org
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy