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________________ arte संपड़ अ बट्टमाना जे अ अड़या सिद्धा जे अ भविस्संति नागए काले सब्वे तिबिहेण वंदामि जे : जो अ :- और अईआ :- भूतकाल में, अतीतकाल में। सिद्धा:- सिद्ध हुए है। जे :- जो अ :- और भविस्संति :- होंगे। अणागए :- भविष्य । काले : काल में। संपइ वर्तमान काल में। वट्टमणा: विद्यमान है। सव्वे :- उन सबको । तिविहेण :- त्रिविध, मन वचन काया से । वंदामि :- मैं वंदन करता हूँ। भावार्थ :- नमस्कार हो अरिहंत भगवंतों को । श्रुतधर्म (द्वादशांगी) की आदि करने वालों को, चतुर्विध संघ की स्थापना करनेवालों को, अपने आप बोध प्राप्त किये हुओं को । लोक में उत्तमों को, लोक के स्वामियों को, लोक के हितकारियों को, लोक के प्रदीपों को, और लोक में अतिशय प्रकाश करने वालों को, अभय प्रदान करने वालों को, श्रुतरुपी नेत्रों को दान करनेवालों को, धर्ममार्ग दिखलाने वालों को, शरण देने वालों को और बोंधिवीजसम्यक्त्व देने वालों को धर्म का स्वरुप समझानेवालों को, धर्म का उपदेश देनेवालों को, धर्म के नेताओं को, नायकों को, धर्मरुपी रथ को चलाने में दक्ष सारथियों को, तथा चार गति का नाश करनेवाले और धर्म चक्र के प्रवर्तक उत्तम चक्रवर्तियों को, नष्ट न होने वाले केवलज्ञान केवलदर्शन धारण करनेवालों को, घातीकर्मों के नाश करने से छद्मस्थावस्था रहितों को, स्वयं राग द्वेष को जीतने तथा दूसरों को राग-द्वेष जिताने वालों को, स्वयं संसार समुद्र से तिरे हुओं तथा दूसरों को संसार समुद्र से तिराने वालों को, स्वयंबुद्धो तथा दूसरों को भी बोध देनेवालों को, स्वयं मुक्त होने वालों तथा दूसरों को भी मुक्ति दिलानेवालों को, सर्वज्ञों को, सर्वदर्शियों को, उपद्रव रहित, निश्चल, व्याधि वेदना रहित, अन्तरहित, क्षयरहित, कर्मजन्य बाधा पीडाओं से रहित और अपुनरावृत्ति (जहां जाने के बाद संसार में वापिस आना नहीं रहता) ऐसी सिद्धि गति नामक स्थान को पाये हुओं को, ऐसे जिनों को, भय जीतने वालों को मेरा नमस्कार हो, ( शक्रस्तव से भाव जिनको वंदन किया है) 94
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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