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श्रीश्रीवल्लभीय-लघुकृति-समुच्चयः इस प्रकार २५ छोटी-मोटी कृतियाँ अभी तक मेरी जानकारी में आई हैं। इन कृतियों में हम चाहे इनके काव्यों को देखें अथवा टीकाग्रन्थों को, प्रत्येक पृष्ठ पर श्रीवल्लभ का प्रकाण्ड-पाण्डित्य और सौजन्यपूर्ण औदार्य ही प्रफुटित हो रहा है। प्रति-परिचय
१.मातृकाश्लोकमाला - इस श्लोकमाला की एकमात्र प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद में मुनि श्री पुण्यविजयजी संग्रह में ग्रन्थाङ्क २८८८ पर अङ्कित है।
२.विद्वत्प्रबोधकाव्य - इस काव्य की एक मात्र प्रति १७वीं शताब्दी की लिखित श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध है। पहिले यह काव्य जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार, सूरत से महावीर स्तोत्र के साथ प्रकाशित हुआ था और पुन: राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर से एकाक्षरनामशेषसंग्रह में प्रकाशित हुआ है।
३. तिमिरीपुरीश्वरश्रीपार्श्वनाथस्तोत्र - श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान भण्डार, पाटण, श्री तपागच्छ भंडार, डाबडा २४८, क्र० नं० १२३५७, पत्र १, साइज २५.५ x १२ सी०एम०, पंक्ति १६, अक्षर ४६, लेखन अनुमानतः १७वीं शताब्दी, रचना के तत्कालीन समय की लिखित यह शुद्ध प्रति है।
४. श्री अजितनाथ स्तुति - इसकी एकमात्र ५ पत्रों की प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबादस्थ मुनि श्री पुण्यविजयजी संग्रह ग्रन्थाङ्क ५२५० पर सुरक्षित है। इस प्रति में प्रथम पद्य और दूसरे पद्य की व्याख्या सम्मिलित हो गई है और प्रथम पद्य का द्वितीय अर्थ रह गया है अतएव यह विचारणीय है।
५. श्री शान्तिनाथ विषमार्थस्तुतिटीका - यह स्तुति टीका सहित श्रीवल्लभगणि ने स्वयं ने लिखी है इसलिए इसका समय १७वीं शताब्दी है।
६. प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक काव्य टीका - इसकी प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर हस्तलिखित ग्रन्थ संग्रहालय में क्रमांक १९८६७ पर सुरक्षित है। प्रतिष्ठान के पुष्पाङ्क १२५ संस्कृत एण्ड प्राकृत मैन्यूस्क्रीप्ट
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