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श्रीश्रीवल्लभीय-लघुकृति-समुच्चयः रसास्वादन के लिये हंसवर्णन में ब्र का उपयोग देखिये:ब्र-षोडशाचिः स्तवनीय! सन्मते!
ब्रयुक्! चतस्रः ककुभो विलोकयन्। ब्रभा! बकस्त्रस्त ऋधग् ब्रवीत्यरं, ब्रचोरभीति नृपते! सुखच्छिदम्॥२७॥ द्वि. प.
३. श्रीपार्वजिनस्तोत्र यमकालंकार गर्भित है। इसके पद्य १४ हैं। १ से १३ तक पद्य सुन्दरीछन्द में है और अन्तिम १४वाँ पद्य इन्द्रवज्रा छन्द में है। कवि ने प्रत्येक श्लोक के प्रत्येक चरण में मध्ययमक का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए प्रथम पद्य देखिए - जिनवरेन्द्रवरेन्द्रकृतस्तुते, कुरु सुखानि सुखानिरनेनसः ॥ भविजनस्य जनस्यदशर्मदः, प्रणतलोकतलोकभयापहः॥१॥
इसमें प्रथम चरण में वरेन्द्र-वरेन्द्र', द्वितीय चरण में 'सुखानि सुखानि', तीसरे चरण में 'जनस्य जनस्य' और चौथे चरण में 'तलोक तलोक' की छटा दर्शनीय है। यही क्रम १३ श्लोकों में प्राप्त है।
४. तिमिरीपुरीश्वरश्रीपार्श्वनाथस्तोत्र
यह समस्या-गर्भित स्तोत्र है। कवि ने तिमिरीपुर स्थान का उल्लेख किया है। यह तिमिरीपुर आज तिंवरी के नाम से प्रसिद्ध है जो जोधपुर से लगभग २५ किलोमीटर दूर है। यह समस्या-प्रधान होते हुए भी महाकवि तुलसीदास के जाकी कृपा पंगु गिरिलंघे के अनुकरण पर कवि की भावाभिव्यक्ति है। प्रभु के प्रात:काल दर्शन करने पर निर्धन भी धनवान् हो जाता है, मूक भी वाचाल हो जाता है, बधिर भी सुनने लगता है, पङ्गु भी नृत्य करने लगता है और कुरूप भी सौन्दर्यवान् हो जाता है। १२ श्लोक हैं। इसमें कवि ने वसन्ततिलका आदि ७ छन्दों का प्रयोग किया है।
५. श्रीअजितनाथ स्तुति टीका श्रीवल्लभ की पूर्व गुरु-परम्परा उपाध्याय-परम्परा रही है। श्री
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