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________________ श्रीश्रीवल्लभीय-लघुकृति-समुच्चयः प्रत्येक शब्द की व्युत्पत्ति, लिङ्गनिर्वचन और शब्दों के प्रयोग सिद्धहेमशब्दानुशासन, उणादिसूत्र, धातुपारायण, विश्वप्रकाश, शाश्वत, वैजयन्ती, माला, इन्दु, वनमाला, अमर, वाचस्पति, भविष्योत्तरपुराण, विष्णुपुराण, मार्कण्डेयपुराण, मत्स्यपुराण, सङ्गीतरत्नावली आदि ४६ ग्रन्थों के उद्धरण देते हुए दीपिकाकार ने सफलता के साथ स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। दीपिका में २० शब्दों के राजस्थानी रूप भी प्राप्त हैं। ग्रन्थपरिमाण १९०० श्लोक में है। दीपिका प्रकाशन योग्य है किन्तु अभी तक अप्रकाशित है। इसकी प्रतियाँ विनयसागर संग्रह कोटा क्रमाङ्क ७७७ और महिमाभक्तिज्ञानभण्डार बीकानेर, ग्रन्थाङ्क १६३५ में प्राप्त है। जिनरत्नकोष के अनुसार इसकी एक प्रति विमलगच्छ उपाश्रय, अहमदाबाद के डाबडा नं. ४६ ग्रन्थाङ्क ३५ पर प्राप्त है। सन् ७३ में इस ग्रन्थ का सम्पादन कर प्रेसकॉपी एल.डी.इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी में प्रकाशनार्थ भेजी थी। उस समय श्री दलसुखभाई मालवणिया निदेशक थे। उन्होंने इसे स्वीकृत भी किया था किन्तु यह लिखा था कि इसके प्रकाशन में कुछ विलम्ब होगा। आज यह संवाद है कि वह प्रेसकॉपी प्राप्त नहीं है। हैमनाममालाशिलोच्छदीपिका प्रस्तुत हैमनाममालाशिलोञ्छ-दीपिका (टीका) की रचना के सन्दर्भ में श्रीवल्लभोपाध्याय ने प्रशस्ति में लिखा है: 'सुरत्राण अकबर प्रतिबोधक एवं अकबर से प्राप्त युगप्रधान-पदधारक श्रीजिनचन्द्रसूरि के धर्मराज्य में तथा सम्राट अकबर के समक्ष ही स्वकरकमलों से स्वपद पर स्थापित श्रीजिनसिंहसूरि के युवराज-धर्मसाम्राज्य में, वि. सं. १६५४, चैत्र कृष्णा सप्तमी को नागपुर (नागौर) में मैंने इस व्याख्या की रचना पूर्ण की है। अर्वाचीन विद्वान् द्वारा निर्मित इस व्याख्या को विद्वद्गण उपेक्षा की दृष्टि से न देखें, क्योंकि मैंने हैमव्याकरण, हैमोणादि आदि व्याकरण ग्रन्थ और नामकोषों को देखकर, गहन विमर्ष कर, पूज्यों का आशीर्वाद प्राप्त कर इस व्याख्या की रचना की है।' संवत् के उल्लेख वाली रचनाओं में श्रीवल्लभ की यह दूसरी रचना है। इस व्याख्या में टीकाकार श्रीवल्लभोपाध्याय का व्याकरण और कोष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004049
Book TitleVallabhiya Laghukruti Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2012
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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