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________________ भूमिका छोटे-मोटे अनेकों ग्रन्थों की रचना कर भारती के भण्डार को अवश्य ही समृद्धिशाली बनाया होगा। वर्तमान समय में इनके द्वारा सर्जित साहित्य जो भी प्राप्त हुआ है, वह निम्नलिखित है: मौलिक पद्य ग्रन्थ- १. विजयदेवमाहात्म्य, २. सहस्रदलकमलबद्ध अरजिनस्तव स्वोपज्ञ टीका सह, ३. संघपतिरूपजीवंशप्रशस्ति स्वोपज्ञ टीका सह, ४. मातृका-श्लोकमाला, ५. विद्वत्प्रबोधकाव्य स्वोपज्ञ टीका सह, ६. पार्श्वनाथ स्तोत्र, ७. तिमरीपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र मौलिक गद्य ग्रन्थ - ८. सारस्वतप्रयोगनिर्णय, ९. ओकेशउपदेशपदद्वयदशार्थी, १०. खरतरपदनवार्थी, ११. चतुर्दशस्वरस्थापनवादस्थल ___टीकाग्रन्थ - १२. हैमलिङ्गानुशासन दुर्गपदप्रबोध टीका, १३. अभिधानचिन्तामणिनाममालासारोद्धार टीका, १४. हैमनाममाला शेषसंग्रह टीका, १५. हैमनाममालाशिलोच्छ टीका, १६. हैमनिघण्टुशेष टीका, १७. विदग्धमुखमण्डन टीका, १८. प्रश्नोत्तरेकषष्टिशतक काव्य टीका, १९. अजितनाथ स्तुति टीका, २०. शान्तिनाथविषमार्थस्तुति टीका, २१. केशा: कञ्जालिकाशोभाः पद्यस्य व्याख्या, २२. खचरानन पश्य सखे खचर पद्यस्य अर्थत्रिकम्, २३. यामाता पद्यस्य अर्थत्रयम्। भाषा ग्रन्थ - २४. चतुर्थगुणस्थानस्वाध्याय, २५. स्थुलिभद्र एकत्रीसो श्री नाहटा बन्धुओं ने सिद्धहेमशब्दानुशासन का भी विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानमन्दिर आगरा में संकेत किया था। यह संग्रह कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा में आ गया है। इस प्रति को देखने पर यह स्पष्ट हो गया कि यह हैमलिङ्गानुशासन दुर्गपदप्रबोध टीका ही है। सिद्धहेमशब्दानुशासन की टीका नहीं है। श्री नाहटाजी ने विदग्धमुखमण्डलटीका का पारीक संस्कृत कॉलेज, मेड़तासिटी में उल्लेख किया है, किन्तु वह यथास्थान प्राप्त नहीं है। प्रकाशितअप्रकाशित क्रमश: इन ग्रन्थों का परिचय दिया जा रहा है: विजयदेवमाहात्म्य महाकाव्य १७वीं शती के तपागच्छाधिपति आचार्य विजयदेवसूरि के माहात्म्य का वर्णन होने से इस महाकाव्य का नाम भी विजयदेवमाहात्म्य महाकाव्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004049
Book TitleVallabhiya Laghukruti Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2012
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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