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दसम कृति पू.आ.भ.श्री राजशेखरसूरिजी कृत "स्याद्वाद कलिका" है।४० श्लोकप्रमाण इस ग्रंथ में अनेकांत सिद्धांत का प्रतिष्ठापन किया गया है।
ग्यारहवीं कृति अज्ञातकर्तृक “षड्दर्शन परिक्रम" है । ६६ कारिकाबद्ध इस ग्रंथ में जैन, मीमांसक, बौद्ध, सांख्य, शैव (नैयायिकवैशेषिक) और नास्तिक मत का संक्षेप में वर्णन किया है।
बारहवीं कृति पू.मु.श्री शुभविजयगणि कृत "स्याद्वादभाषा" है । यह सूत्रात्मक ग्रंथ में जैन दार्शनिक पदार्थो का स्वरुप विस्तार से बताया है। यह ग्रंथ पू.आ.श्री वादिदेवसूरिजी कृत "प्रमाणनयतत्त्वालोक' ग्रंथ की लघु आवृत्ति समान है। उसकी टीका भी उपलब्ध है।
तेरहवीं कृति अज्ञातकर्तृक "अनुमानमातृका'' है । १३ श्लोक प्रमाण यह लघु ग्रंथ में अनुमान विषयक विवरण किया है।
चौदहवीं कृति पू.आ.भ.श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी म.सा. विरचित "न्यायावतार'' है । ३२ श्लोक प्रमाण इस ग्रंथ में युक्तिपुरस्सर तर्कयुक्त दलीलो से प्रमाण संबंधी प्रतिपादन किया है। जैनदार्शनिक ग्रंथ श्रेणी में इस ग्रंथ का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
पंद्रहवीं कृति पू.आ.भ.श्री शांतिसूरिजी विरचित "न्यायावतार सूत्रवार्तिक" है। चार परिच्छेद में विभक्त और ५७ श्लोक प्रमाण इस ग्रंथ में प्रमाण विषयक निरुपण किया है।
सोलहवीं कृति पू.आ.भ:श्री समन्तभद्राचार्य रचित "युक्त्यनुशासन" है । ६४ कारिकाबद्ध इस ग्रंथ में दार्शनिक परामर्श किया है।
सत्रहवीं कृति कलिकाल सर्वज्ञ पू.आ.भ.श्री हेमचन्द्रसूरिजी म. विरचित "अयोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका" है ।
अठारहवीं कृति कलिकालसर्वज्ञ पू.आ.भ.श्री हेमचन्द्रसूरिजी म. विरचित "अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका" है । दोनों ग्रंथ में देवता तत्त्व का सर्वोत्कृष्ट विवेचन किया है।
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