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उन्नीसवीं कृति पू.आ.भ.श्री चन्द्रसेनसूरिजी विरचित "उत्पादादि सिद्धि" है। ३२ कारिकाबद्ध इस ग्रंथ में वस्तु की त्रयात्मकता (उत्पत्ति-स्थिति-लय) का अद्भूत शैली में प्रतिपादन किया है।
• परिशिष्ट : परिशिष्ट में सभी सूत्रात्मक ग्रंथो के सूत्रो का अकारादिक्रम दिया है।
यहाँ उल्लेखनीय है कि, जैनदर्शन के दार्शनिक ग्रंथकलाप में इसके अलावा सम्मतितर्क, शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्याद्वादरहस्य, स्याद्वादमंजरी आदि अनेक ग्रंथ उपलब्ध है। वे ग्रंथ पूर्व में प्रकाशित हुए है और दार्शनिक जगत में प्रसिद्ध भी है। इसलिए यह संकलन में उन ग्रंथों का समावेश किया नहीं है।
तुलनात्मक अभ्यास हेतु संकलित यह ग्रंथ दार्शनिक जगत में सत्यान्वेषण के लिए सहायक बनकर आत्मशुद्धि का निमित्त बने ऐसी शुभकामना....
मु. संयमकीर्ति वि. रत्नत्रयी आराधना भवन, वसंतकुंज, अहमदाबाद
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