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तृतीय कृति “लघुषड्दर्शनसमुच्चय' है। अज्ञातकर्तृक इस लघु ग्रंथ में भी जैन, नैयायिक, बौद्ध, वैशेषिक, जैमिनि (मीमांसक), सांख्य एवं नास्तिक दर्शन का संक्षेप में निरुपण किया है।
चतुर्थ कृति पू.आ.भ.श्री राजशेखरसूरिजी म.सा. कृत "षड्दर्शन समुच्चय" है । १८० श्लोक प्रमाण इस ग्रंथ में जैन, सांख्य, मीमांसक, नैयायिक, वैशेषिक, बौद्ध, अष्टांग योग (योगदर्शन) और नास्तिक मत का प्रतिपादन किया है। अन्यत्र प्रायः अनुपलब्ध प्रत्येक दर्शन के बेष, आचार
और लिंग का वर्णन इस ग्रंथ में मिलता है। __ पंचम कृति पू.आ.भ.श्री मेरुतुंगसूरिजी म.सा. कृत 'षड्दर्शन निर्णय" है। इस ग्रंथ में बौद्ध, मीमांसा (पूर्व और उत्तरमीमांसा दोनों), सांख्य, न्याय, वैशेषिक और जैनदर्शन - इन छ: दर्शनो संबंधी प्रधानतया देव-गुरु-धर्म विषयक मीमांसा की है और अनेक स्थल पे महाभारत, पुराण, स्मृति आदि के कोटेशन भी दिये है।
षष्ठ कृति पू.मु.श्री यशस्वत्सागरजी म. कृत "जैनस्याद्वादमुक्तावली" है । चार स्तबक में विभक्त इस ग्रंथ में स्याद्वाद, प्रमाण, प्रमाण के भेद-प्रभेद, एवं नयादि पदार्थो का निरुपण किया है और रोचक शैली में दार्शनिक समीक्षा भी की है।
सप्तम कृति में पू.मु.श्री यशस्वत्सागरजी म. कृत "स्याद्वादमुक्तावली" (जिसका अपर नाम "जैनविशेषतर्क') है । तीन स्तबक में विभक्त इस ग्रंथ में जैनदर्शन के मान्य जीवादि पदार्थो का निरुपण एवं प्रमाण का स्वरुप इत्यादि प्रतिपादन किया है।
अष्टम कृति अज्ञातकर्तृक "सर्वसिद्धान्तप्रवेशक" है । गद्यात्मक इस ग्रंथ में नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य, बौद्ध, मीमांसक, लोकायतिक मत का संक्षिप्त सरण एवं उपयोगी टिप्पनक सहित प्रतिपादन किया है।
नवम कृति पू.पं.श्री पद्मसागरगणि विरचित 'युक्तिप्रकाश विवरण" है । २८ कारिकाबद्ध सटीक इस ग्रंथ में स्याद्वाद सिद्धांत के प्रति सभी दर्शनो को उन उन दर्शनो का युक्ति-प्रमाण देके अभिमुख करने का सफल प्रयास किया है।
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