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________________ १० अधिकरण, सप्तमाध्याय में और अष्टमाध्याय में अतिदेश ( एक कर्म की समानता पर अन्य कर्म का विनियोग), नवमाध्याय में ऊह, दशमाध्याय में बाध, एकादशाध्याय में तंत्र और द्वादशाध्याय में प्रसंग का वर्णन किया है। "द्वादशलक्षणी" के उपर श्री शबरस्वामी कृत "शाबरभाष्य" उपलब्ध है । पंचम सूत्रात्मक ग्रंथ ( वेदान्तदर्शन का ) ब्रह्मसूत्र है । इसके रचयिता श्री बादरायण ऋषि है । ब्रह्मसूत्र में चार अध्याय और प्रत्येक अध्याय में चार पाद है । प्रथम अध्याय का नाम समन्वयाध्याय है, जिसमें समग्र वेदान्तवाक्यों का साक्षात् या परम्परया प्रत्यगभिन्न अद्वितीय ब्रह्म में तात्पर्य दिखलाया गया है । इस अध्याय में प्रथम पाद में स्पष्ट-ब्रह्मलिंगयुक्त वाक्यों का विचार किया गया है। इस पाद के प्रथम चार सूत्र विषयदृष्टि से नितान्त महत्त्वशाली है। इन्हें चतुःसूत्री कहते है। द्वितीय पाद में अस्पष्टब्रह्मलिङ्गयुक्त उपास्य ब्रह्मविषयक वाक्यों का तथा तृतीय पाद में स्पष्ट ब्रह्मलिङ्ग प्रायश: ज्ञेय ं ब्रह्म विषयक वाक्यों का, चतुर्थ पाद में अज, अव्यक्तादि उपनिषद्गत पदों के अर्थ का विचार किया गया है । द्वितीय अध्याय का नाम अविरोधाध्याय है, जिसमें स्मृति, तर्कादि के सम्भावित विरोध का परिहारकर के ब्रह्म में अविरोध प्रदर्शित किया गया है। इस अध्याय के प्रथम पाद (स्मृति पाद) में सांख्यादि स्मृतियों के सिद्धान्तों का खण्डन किया गया है। द्वितीय पाद (तर्क पाद) में सांख्य, वैशेषिक, जैन, सर्वास्तिवाद, विज्ञानवाद, पाशुपत और पाञ्चरात्र मतों का क्रमशः खण्डन कर के वेदान्तमत की प्रतिष्ठा की गई है । तृतीय तथा चतुर्थ पादों में महाभूतसृष्टि, जीव तथा इन्द्रिय विषयक श्रुतियों का विरोधपरिहार किया गया है । तृतीय अध्याय का नाम साधनाध्याय है, जो वेदान्तसम्मत साधनों का विधान करता है । परलोकगमन, तत्त्वपदार्थपरिशोधन, सगुणविद्यानिरुपण तथा निर्गुण- ब्रह्म-विद्या के बहिरङ्गसाधन (आश्रमधर्म, यज्ञ, दानादि) तथा अन्तरङ्गसाधन ( शम, दम, निदिध्यासन आदि) का निरुपण प्रत्येक पाद में क्रमशः किया गया है। चतुर्थ अध्याय का नाम फलाध्याय है, जिसमें सगुण-निर्गुण विद्याओं के फलों का For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004048
Book TitleShaddarshan Sutra Sangraha evam Shaddarshan Vishayak Krutaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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