SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११ साङ्गोपाङ्ग विवेचन किया गया है । ब्रह्मसूत्र के उपर श्री शंकराचार्य विरचित " शारीरिक भाष्य" आदि अनेक भाष्यों उपलब्ध है । 1 षष्ठ सूत्रात्मक ग्रंथ (सांख्यदर्शन का ) सांख्य सूत्र है । इसके रचयिता श्रीकपिल ऋषि है । सांख्यसूत्र में ६ अध्याय है और सूत्र संख्या ५३७ है प्रथम अध्याय में विषय का प्रतिपादन, दूसरे में प्रधान का निरुपण, तृतीय में वैराग्य, चतुर्थ में सांख्यतत्त्वों के सुगम बोध के लिए अनेक रोचक आख्यायिका, पंचम में परपक्ष का निरास, षष्ठ में सिद्धान्तों का संक्षिप्त परिचय है। सांख्यसूत्र के उपर 'अनिरुद्धवृत्ति' नाम की टीका उपलब्ध है। सप्तम सूत्रात्मक ग्रंथ ( योगदर्शन का पातञ्जल योगसूत्र है । इसके रचयिता श्री पातंजल ऋषि है। योगदर्शन में चार पाद है, जिनकी सूत्र संख्या १६५ है । पहले समाधि पाद में समाधि के रुप तथा भेद, चित्त तथा उसकी वृत्ति आदि का वर्णन है । द्वितीय ( साधन ) पाद में क्रिया-योग, क्लेश तथा उसके भेद, क्लेशो को दूर करने के साधन, हेयहेतु, हान तथा हानोपाय, योग के अष्टांग आदि विषयों का प्रतिपादन है। तृतीय (विभूति) पाद में धारणा, ध्यान और समाधि के अनन्तर योग के अनुष्ठान से उत्पन्न होनेवाली विभूतियों का और चतुर्थ (कैवल्य) पाद में समाधिसिद्धि, निर्माणचित्त, विज्ञानवादनिराकरण, कैवल्य का निर्णय आदि निरुपण किया गया है । योगसूत्र के उपर " व्यासभाष्य" एवं श्री भोजकृत 'राजमार्तण्ड' आदि अनेक टीकाए मिलती है। अष्टम सूत्रात्मक ग्रंथ ( न्यायदर्शन का ) न्यायसूत्र ( नैयायिकसूत्र ) है । इनके प्रणेता श्री गौतमऋषि है। न्यायसूत्र पांच अध्यायों में विभक्त है और प्रत्येक अध्याय दो आह्निकों में विभक्त है । इनमें षोडश पदार्थो के उद्देश्य (नामकथन), लक्षण (परिभाषा) तथा परीक्षण किये गये है । इन षोडश पदार्थो के नाम है - प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति तथा निग्रहस्थान । चतुर्थ अध्याय के सूत्रो में शून्यवाद - बाह्यार्थभंगवाद आदि बौद्धमतों का खंडन किया है । न्यायसूत्र के उपर श्री वात्स्यायन ऋषि कृत " न्यायभाष्य " Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004048
Book TitleShaddarshan Sutra Sangraha evam Shaddarshan Vishayak Krutaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy