________________
19. कालें चोइउ को हक्कारइ।
48/2/2 __- काल से प्रेरित होकर कौन ललकारता है? 20. तं वयणु सुणेविणु मन्ति भणइ।
48/2/3 - उस वचन को सुनकर मन्त्री कहता है। 21. ताई सव्वाइं महु अप्पेवि सन्धि करहु ।
16/11/3 - वे सब मुझे देकर (अर्पित करके) सन्धि कर लो। 22. णं सग्ग-खण्डु वि अवयरेवि थिउ।
9/13/6 - मानो स्वर्ग-खण्ड ही उतरकर स्थित हो गया। 23. तं णिसुणेवि वे वि अवलोएवि धरणिधर थिउ । 2/15/8
- उसे सुनकर और दोनों को ही देखकर धरणेन्द्र स्थित हो गये। 24. बहु-दिवसेहिँ जणणु आउच्छेवि सो पुप्फवणु गउ। 9/1/2
- बहुत दिनों बाद पिता को पूछकर वह पुष्पवन में गया।
28]
[पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org