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७६० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०२३
भद्रबाहुकथानक में कोई भी अंश प्रक्षिप्त नहीं । यापनीयपक्ष
- पूर्वनिर्दिष्ट यापनीयपक्षधर लेखक-लेखिका की मान्यता है कि सम्पूर्ण बृहत्कथाकोश में यापनीयमत के सिद्धान्तों का प्रतिपादन है, केवल उसके भद्रबाहुकथानक (क्र.१३१) में जो शिथिलाचारी श्वेताम्बर साधुओं से यापनीयसंघ की उत्पत्ति बतलाई गई है, वह अंश प्रक्षिप्त है। श्रीमती पटोरिया लिखती हैं कि भद्रबाहुकथा अर्द्धफालकसम्प्रदाय से काम्बलतीर्थ (श्वेताम्बरसम्प्रदाय) की उत्पत्ति बताकर समाप्त हो जाती है। उसके बाद किसी यापनीयविरोधी व्यक्ति ने निम्नलिखित श्लोक जोड़ दिया है
ततः कम्बलिकातीर्थान्नूनं सावलिपत्तने।
दक्षिणापथदेशस्थे जातो यापनसङ्घकः॥ ८१॥२० अनुवाद-"उसके बाद उस काम्बलिक तीर्थ से दक्षिणापथदेश के सावलिपत्तन नगर में यापनीयसंघ की उत्पत्ति हुई।" दिगम्बरपक्ष
भद्रबाहुकथानक (क्र.१३१) का यह अन्तिम श्लोक है। श्रीमती पटोरिया और डॉ० सागरमल जी ने सम्पूर्ण बृहत्कथाकोश में भद्रबाहुकथानक के केवल इसी श्लोक को यापनीयमतविरोधी माना है, शेष सम्पूर्णग्रन्थ को यापनीयमत-समर्थक, इसलिए इसे उन्होंने प्रक्षिप्त मान लिया है।
किन्तु हम देख चुके हैं कि बृहत्कथाकोश का केवल यही श्लोक यापनीयमतविरोधी नहीं है, अपितु सम्पूर्ण ग्रन्थ यापनीयमतविरोधी सिद्धान्तों से भरा हुआ है। भद्रबाहुकथानक में भी केवल उक्त श्लोक यापनीयमतविरोधी नहीं है, उसमें तो शुरू से लेकर अन्त तक वर्णित प्रत्येक घटना और सिद्धान्त यापनीयमत-विरोधी है। देखिए
१. भद्रबाहुकथानक में दिगम्बर आचार्यपरम्परा के चौथे श्रुतकेवली गोवर्धन को भद्रबाहु का गुरु कहा गया है-"गोवर्धनश्चतुर्थोऽसावाचतुर्दशपूर्विणाम्" (श्लोक ९)। यह यापनीयमत के विरुद्ध है, क्योंकि यापनीय श्वेताम्बर-आगमों को प्रमाण मानते थे, इसलिए उनके कर्ता श्वेताम्बराचार्य ही उनके लिए प्रमाण थे। श्वेताम्बरपरम्परा के अनुसार भद्रबाहु के गुरु आचार्य यशोभद्र थे।
२०. यापनीय और उनका साहित्य/ पृ.१५३, जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय/ पृ. १६९ ।
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