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________________ अ० २१ / प्र०१ हरिवंशपुराण / ६९७ शब्दसमभिरूद्वैवंभूता नयाः" (१/३३), ये सात नय मान्य हैं। हरिवंशपुराण में इन्हीं सात नयों को स्वीकार किया गया है नैगमः सडग्रहश्चात्र व्यवहारर्जुसूत्रको। शब्दः समभिरूढाख्य एवंभूताश्च ते नयाः॥ ५८ /४१॥ इसी प्रकार श्वेताम्बरीय तत्त्वार्थसूत्र में पुण्यप्रकृतियाँ आठ मानी गयी हैं"सद्वेद्य-सम्यक्त्व-हास्य-रति-पुरुषवेद-शुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम्।" (८/२६)। किन्तु दिगम्बरीय तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार वे केवल चार हैं-"सवेद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम्।" (८/२५)। हरिवंशपुराण में दिगम्बरीय तत्त्वार्थसूत्र का ही अनुकरण किया गया है। यथा शुभायुर्नामगोत्राणि सवेद्यं च चतुर्विधः। पुण्यबन्धोऽन्यकर्माणि पापबन्धः प्रपञ्चितः॥ ५८/२९८॥ २. हरिवंशपुराण में हिंसा और असत्य की निम्नलिखित परिभाषाएँ सर्वार्थसिद्धि (७/१३-१४) से अनुकृत की गई हैं स्वयमेवात्मनात्मानं हिनस्त्यात्मा प्रमादवान्। पूर्व प्राण्यन्तराणां तु पश्चात्स्याद्वा न वा वधः॥ ५८ / १२९॥ सदर्थमसदर्थं च प्राणिपीडाकरं वचः। असत्यमनृतं प्रोक्तमृतं प्राणिहितं वचः॥ ५८ / १३०॥ ३. हरिवंशपुराण में सम्यक्त्वप्रकृति की यह परिभाषा भी अकलंकदेवकृत तत्त्वार्थराजवार्तिक २१ के आधार पर निबद्ध की गयी है शुभात्मपरिणामेन निरुद्धस्वरसे स्थिते। मिथ्यात्वे श्रद्दधानस्य सम्यक्त्वप्रकृतिर्भवेत्॥ ५८ / २३२॥ ४. अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य श्रुत का वर्णन वीरसेन-स्वामीकृत धवलाटीका के आधार पर किया गया है। श्वेताम्बरीय तत्त्वार्थसूत्र (१/२०) के भाष्य में अंगबाह्यसूत्र के भीतर प्रत्याख्यान, दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प, व्यवहार, निशीथ और ऋषिभाषित आदि शास्त्रों का समावेश है, जब कि धवलाटीका (ष.ख./पु.१/ सूत्र २/ पृ.९७) में इनके स्थान पर कल्पाकल्प, महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक और निषिद्धिका का उल्लेख मिलता है। हरिवंशपुराण में भी धवलाटीका में उल्लिखित इन्हीं शास्त्रों के नाम वर्णित किये गये हैं। यथा२१. "तदेव सम्यक्त्वं शुभपरिणामनिरुद्धस्वरसं यदौदासीन्येनावस्थितमात्मानं श्रद्दधानं न निरुणद्धि। तद्वेदयमानः पुरुषः सम्यग्दृष्टिरित्यभिधीयते।" तत्त्वार्थराजवार्तिक ८/९/२/ पृ.५७४। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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