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________________ अ०१३ / प्र०१ भगवती-आराधना / १९ १. "मुक्त्यर्थी च यतिर्न चेलं गृह्णाति मुक्तेरनुपायत्वात्।" (गा. 'जिणपडिरूवं' ८४)। अनुवाद-"मुक्ति का इच्छुक मुनि वस्त्रग्रहण नहीं करता, क्योंकि वह मुक्ति का उपाय नहीं है।" २. "सकलसङ्गपरिहारो मार्गो मुक्तेः। --- न चेत् सकलपरिग्रहत्यागो मुक्तिलिङ्ग किमिति नियोगतोऽनुष्ठीयत इति?" (गा.' जत्तासाधण' ८१ / पृ.११७)। अनुवाद-"समस्त परिग्रह का त्याग मुक्ति का मार्ग है। यदि सकल परिग्रह का त्याग मुक्ति का लिंग न होता, तो उसे नियमपूर्वक (अनिवार्यतः) ग्रहण क्यों किया जाता?" ३. "सकलपरिग्रहत्यागो मुक्तेर्मार्गो मया तु पातकेन वस्त्रपात्रादिकः परिग्रहः परीषह-भीरुणा गृहीत इत्यन्तःसन्तापो निन्दा।" (गा. अववादिय'८६ / पृ.१२२)। अनुवाद-"सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग मुक्ति का मार्ग है, किन्तु मुझ पापी ने परीषहों के डर से वस्त्रपात्रादि-परिग्रह ग्रहण किया, ऐसा अन्तःसन्ताप निन्दा कहलाता है।" ४. "चेलग्रहणं परिग्रहोपलक्षणं तेन सकलग्रन्थत्याग आचेलक्यशब्दस्यार्थः।" (गा. 'देसामासिय'१११७/ पृ.५७३)। __ अनुवाद-"वस्त्रग्रहण परिग्रह का उपलक्षण है, अतः समस्त परिग्रह का त्याग आचेलक्य शब्द का अर्थ है।" ५. "नैव संयतो भवतीति वस्त्रमात्रत्यागेन शेषपरिग्रहसमन्वितः।" (गा.'ण य होदि' १११८/पृ.५७४)। अनुवाद-"वस्त्रमात्र छोड़ देने और शेष परिग्रह रखने से कोई संयत नहीं होता।" ६. "यतीनामपवादकारणत्वात् परिग्रहोऽपवादः। अपवादो यस्य विद्यत इत्यपवादिकं परिग्रहसहितं लिङ्गम्।" (गा.' उस्सग्गिय' ७६ पृ./११३)। अनुवाद-"मुनियों के लिए अपवाद (निन्दा) का कारण होने से परिग्रह अपवाद कहलाता है। परिग्रह जिस लिंग में होता है, वह परिग्रहसहितलिंग आपवादिकलिंग है।" इन प्रमाणों को देखते हुए यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि भगवतीआराधना या उसकी टीका में कहीं भी मुनि के लिए सचेल अपवादलिंग का विधान किया गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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