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________________ भगवती - आराधना / १७ अ० १३ / प्र० १ अनुवाद - " परिग्रह का त्याग, लाघव, अप्रतिलेखन, निर्भयता, सम्मूर्च्छन जीवों की रक्षा तथा परिकर्म का त्याग, ये गुण भी मुनियों के लिए निर्धारित उत्सर्गलिंग में होते हैं । " अपराजित सूरि ने दिगम्बर मुनियों द्वारा गृहीत अचेललिंग के इन गुणों का विवेचन श्वेताम्बर मुनियों द्वारा स्वीकृत सचेललिंग के दोषों को दर्शाते हुए किया है । यथा “गंथच्चागो—परिग्रहत्यागः । लाघवं - हृदयसमारोपितशैल इव भवति परिग्रहवान् । कथमिदमन्येभ्यश्चौरादिभ्यः पालयामीति दुर्धरचित्तखेदविगमाल्लघुता भवति । अप्पडिलिहणं-वसनसहितलिङ्गधारिणो हि वस्त्रखण्डादिकं शोधनीयं महत् । इतरस्य पिच्छादिमात्रम् । परिकम्मविवज्जणा चेव - याचनसीवनशोषणप्रक्षालनादिरनेको हि व्यापारः स्वाध्यायध्यानविघ्नकारी, अचेलस्य तन्न तथेति परिकर्मविवर्जनम् । गदभयत्तं—भयरहितता। भयव्याकुलितचित्तस्य न हि रत्नत्रयघटनायामुद्योगो भवति । सवसनो यतिर्वस्त्रेषु यूकालिक्षादिसम्मूर्च्छनज - जीवपरिहारं न विधातुमर्हः । अचेलस्तु तं परिहरतीत्याह—'संसज्जणं परिहारो' इति । परिसह अधिवासणा चेव १९ – शीतोष्णदंशमशकादिपरीषहजयो युज्यते नग्नस्य । वसनाच्छा-दनवतो न शीतादिबाधा येन तत्सहनपरीषहजयः स्यात् । पूर्वोपात्तकर्मनिर्जरार्थं परिषोढव्याः परीषहा इति वचनान्निर्जरार्थिभिः परिषोढव्याः परीषहाः ।" (वि.टी. / भ. आ./गा.८२/पृ. ११७-११८)। अनुवाद "परिग्रह का छूटना उत्सर्गलिंग के ग्रहण का पहला गुण है। दूसरा गुण है लाघव, क्योंकि परिग्रही को ऐसा लगता है, जैसे उसकी छाती पर पहाड़ रखा हो। 'चोर आदि से इस परिग्रह की रक्षा कैसे करूँ,' चित्त से यह बोझ हट जाने पर बहुत हलकापन महसूस होता है। "जो मुनि वस्त्रसहित लिंगधारण करते हैं, उन्हें वस्त्रादि अनेक वस्तुओं का शोधन करना पड़ता है, किन्तु वस्त्ररहित साधु के लिए केवल पिच्छी - कमण्डलु का ही शोधन आवश्यक होता है। अतः अप्रतिलेखन भी अचेलत्व का एक गुण है । १९. इस गुण का उल्लेख अगली गाथा में है, जो इस प्रकार हैविस्सासकरं रूवं अणादरो विसयदेहसुक्खेसु । सव्वत्थं अप्पवसदा परिसह - अधिवासणा चेव ॥ ८३ ॥ भगवती - आराधना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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