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________________ ६६६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ अ०२० / प्र० १ मल्लिर्मिथिलाप्रसूतौ।” (२७/८४) अर्थात् नमिनाथ और मल्लिनाथ का जन्म मिथिला में हुआ था। मल्लिनाथ के पुरुष होने की यह मान्यता श्वेताम्बर और यापनीय मतों के विरुद्ध है। इससे सिद्ध होता है कि वरांगचरित श्वेताम्बर और यापनीय परम्पराओं से भिन्न परम्परा का अर्थात् दिगम्बरपरम्परा का है। इसके अतिरिक्त यापनीयमान्य श्वेताम्बर - आगम 'ज्ञातृधर्मकथाङ्ग' में यह माना गया है कि भगवती मल्ली पूर्वभव में जयन्त नामक अनुत्तर विमान में देवपर्याय में थीं, जब कि वरांगचरित के अनुसार मल्लिनाथ भगवान् पूर्वभव में अपराजित नामक अनुत्तर विमान में देव थे। (देखिये, उपर्युक्त उद्धरण) । दिगम्बरग्रन्थ तिलोयपण्णत्ती में भी उनके अपराजित विमान से अवतरित होने की बात कही गई है। इससे भी सूचित होता है कि वरांगचरित की परम्परा श्वेताम्बर और यापनीय परम्पराओं से भिन्न है । उपर्युक्त कथन इस तथ्य के प्रमाण हैं कि वरांगचरित स्त्रीमुक्ति को स्वीकार नहीं करता । ४ महावीर का विवाह न होने की मान्यता यापनीयमान्य श्वेताम्बर - आगम आचारांग के अनुसार भगवान् महावीर का विवाह हुआ था। उनकी पत्नी का नाम यशोदा था, जो कौण्डिन्य गोत्रीया थीं। उनकी पुत्री के दो नाम थे : अनवद्या और प्रियदर्शना। उसका गोत्र काश्यप था किन्तु वरांगचरित का कथन है कि उनका विवाह नहीं हुआ था । में ही दीक्षित हो गये थे मल्लिश्च पार्श्वो वसुपूज्यपुत्रोऽप्यरिष्टनेमिश्च तथैव वीरः । कौमारकाले वयसि प्रयाता भुक्त्वा भुवं ते प्रययुश्च शेषाः ॥ २७/८९ ॥ अनुवाद — “तीर्थंकर वासुपूज्य, मल्लिनाथ, अरिष्टनेमि (नेमिनाथ), पार्श्वनाथ और महावीर, ये पाँच कौमारकाल में ही दीक्षित हो गये थे। शेष तीर्थंकर पृथ्वी का भोग करके प्रव्रजित हुए थे । " Jain Education International कुमारकाल २. “समणस्स णं भगवओ महावीरस्स भज्जा जसोया गोत्तेणं कोडिण्णा । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स धूया कासवगोत्तेणं । तीसे णं दो णामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा - अणोज्जा त्ति वा पियदंसणा त्ति वा । " आचारांगसूत्र / द्वितीयश्रुतस्कन्ध / अध्ययन १५ / भावना / पृ. ४८८ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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