SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 702
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ अ० १९ / प्र० २ उनके इन्द्र, दिवाकरयति आदि गुरुओं का भी यापनीय होना असंभव है। फलस्वरूप रविषेण को यापनीय सिद्ध करने के लिए उनके गुरु को यापनीय मानने का' हेतु असत्य है, अतः 'उनके शिष्य रविषेण यापनीय हैं। यह निर्णय भी असत्य है । यतः पद्मपुराण में दिगम्बरीय सिद्धान्तों का निरूपण है, अतः उसके कर्त्ता रविषेण दिगम्बराचार्य हैं, अत एव उनके गुरु इन्द्र, दिवाकरयति आदि भी दिगम्बर ही थे । शाकटायनसूत्र में इन्द्र का उल्लेख होना उनके यापनीय होने का प्रमाण नहीं है । दिगम्बर इन्द्र का भी शाकटायन द्वारा उल्लेख किया जाना संभव है । अथवा वे कोई अन्य इन्द्र हो सकते हैं। गोम्मटसार में जिस इन्द्र को संशयमिथ्यादृष्टि कहा गया है, वह दिगम्बराचार्य रविषेण का गुरु नहीं हो सकता, अतः वह उनसे भिन्न है, यह युक्ति से सिद्ध होता है। २ यापनीयपक्ष " आचार्य रविषेण ने अपनी कथा के स्रोत के विषय में लिखा है- वर्द्धमान जिनेन्द्र द्वारा कथित यह कथा इन्द्रभूति गौतम को प्राप्त हुई, फिर क्रम से धारिणीपुत्र सुधर्मा को और फिर क्रम से प्रभवस्वामी को प्राप्त हुई। इसके पश्चात् अनुत्तरवाग्मी कीर्ति द्वारा लिखित कथा प्राप्त करके रविषेण ने यह प्रयत्न किया। ध्यातव्य है कि जम्बूस्वामी के पश्चात् जैनसम्प्रदाय की दो धारायें प्राप्त होती हैं। दिगम्बर- परम्परा आचार्य विष्णु को तथा श्वेताम्बर - परम्परा आचार्य प्रभवस्वामी को जम्बूस्वामी का उत्तराधिकारी मानती है। रविषेण के द्वारा सुधर्मा के पश्चात् प्रभवस्वामी का उल्लेख, ये दिगम्बर - परम्परा के नहीं थे, यह मानने के लिए पर्याप्त प्रमाण है ।" (या. औ. उ. सा. / पृ. १४६ - १४७)। दिगम्बरपक्ष यहाँ पद्मपुराण को यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने के लिए उसमें जो प्रभवस्वामी को आचार्य परम्परा से रामकथा की प्राप्ति का उल्लेख है, उसे हेतु बतलाया गया है । किन्तु पद्मपुराण में सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति आदि का निषेध है, अत एव वह दिगम्बरग्रन्थ है । और दिगम्बरग्रन्थ में उपर्युक्त उल्लेख है, इसलिए वह यापनीयग्रन्थ का असाधारण धर्म नहीं है। फलस्वरूप उसमें पद्मपुराण को यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने का हेतुत्व नहीं है, अतः वह हेत्वाभास है। प्रभवस्वामी के उल्लेख का कारण यह है कि रविषेण ने पद्मपुराण की रचना श्वेताम्बर विमलसूरि के पउमचरिय के आधार पर की है। उन्होंने 'पउमचरिय' का १०. पद्मपुराण / भाग १ / १ / ४१-४२ एवं भाग ३ / १२३ / १६६ | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy