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________________ द्वितीय प्रकरण यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता यतः पद्मपुराण में प्रतिपादित यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों से उसका यापनीयग्रन्थ होना असिद्ध हो जाता है, अतः यापनीयमत-समर्थक सभी हेतु असत्य या हेत्वाभास हैं, यह बात सिद्ध हो जाती है। उनमें से कौन-सा हेतु असत्य है और कौन-सा हेत्वाभास, इसका स्पष्टीकरण आगे किया जा रहा है। यापनीयपक्ष रविषेण के अनुसार उनकी गुरुपरम्परा इस प्रकार है-इन्द्र, दिवाकरयति, अर्हन्मुनि, लक्ष्मणसेन व रविषेण। (पद्मपुराण/भा.३/१२३/१६८)। शाकटायनसूत्र (श्लोक १०) में भी इन्द्र का उल्लेख है। शाकटायनसूत्र यापनीयग्रन्थ माना जा चुका है। गोम्मटसार (जीवकाण्ड / गाथा १६) में इन्द्र को संशयी बताया गया है। टीकाकार ने इन्द्र को श्वेताम्बर गुरु बताया है। इस विषय में पं० नाथूराम जी प्रेमी का कथन है-"इन्द्र नाम के श्वेताम्बराचार्य का अभी तक कोई उल्लेख नहीं मिला। बहुत संभव है कि वे यापनीय ही हों और श्वेताम्बरतुल्य होने से श्वेताम्बर कह दिये गये हों। द्विकोटिगत ज्ञान को संशय कहते हैं, जो श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में घटित नहीं हो सकता। परन्तु यापनीयों को कुछ श्वेताम्बर तथा कुछ दिगम्बर होने के कारण शायद संशयमिथ्यादृष्टि कह दिया गया हो। बहुत संभव है कि शाकटायनसूत्रकार ने इन्हीं इन्द्रगुरु का उल्लेख किया हो।" (जै.सा.इ./द्वि.सं/ पृ. १६७)। "इन्द्र और दिवाकरयति यदि यापनीय हों, तो रविषेण भी यापनीय ही होने चाहिए। यदि यह दिवाकरयति सन्मतिकार हैं, तो उनका यापनीय होना निश्चित है।" (या.औ.उ.सा./ पृ. १४६)। दिगम्बरपक्ष __पं० नाथूराम जी प्रेमी ने यापनीय-आचार्य पाल्यकीर्ति शाकटायन के शाकटायनसूत्रपाठ में उल्लिखित इन्द्र के यापनीय होने की संभावना व्यक्त की है। श्रीमती पटोरिया ने इन इन्द्र को बिना किसी प्रमाण के रविषेण के गुरुओं के गुरु इन्द्र से अभिन्न मानकर रविषेण को यापनीय घोषित कर दिया है। यह उनकी कपोलकल्पना है, प्रमाणसिद्ध तथ्य नहीं। ___ पद्मपुराण में पूर्वोक्त यापनीयमत-विरोधी सिद्धान्तों के प्रतिपादन से सिद्ध है कि वह यापनीयग्रन्थ नहीं है। अतः उसके कर्ता रविषेण भी यापनीय नहीं हैं, इसलिए Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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