SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 676
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ ६ यापनीयपक्ष डॉ० उपाध्ये – सिद्धसेन कर्नाटक के थे, क्योंकि कर्नाटकोत्पन्न कुन्दकुन्द और मूलाचार के कर्ता वट्टकेर की गाथाओं से 'सन्मन्तिसूत्र' की गाथाओं का साम्य है। यापनीयों का सम्बन्ध भी कर्नाटक से रहा है । अतः सिद्धसेन यापनीय थे । दिगम्बरपक्ष कर्नाटक से सम्बन्ध तो कुन्दकुन्द और वट्टकेर जैसे दिगम्बराचार्यों का भी रहा है । अत: कर्नाटक से सम्बन्ध रखनेवाला हेतु उभयपक्षसाधक होने से निर्णायक नहीं है। हाँ, कुन्दकुन्द की गाथाओं और दिगम्बराचार्य वट्टकेरकृत मूलाचार की गाथाओं से सन्मतिसूत्र की गाथाओं का साम्य सिद्ध करता है कि सिद्धसेन दिगम्बर थे। उभयपक्षसाधक होने से उपर्युक्त हेतु हेत्वाभास है । अ०१८ / प्र० ७ ७ यापनीयपक्ष डॉ० पटोरिया - हरिवंशपुराण तथा पद्मपुराण के कर्त्ताओं ने सिद्धसेन को अपनी गुर्वावली में प्रदर्शित किया है। किन्तु ये दोनों ग्रन्थ भी यापनीय हैं, अतः इनके कर्त्ता यापनीय हैं। फलस्वरूप इनके गुरु सिद्धसेन भी यापनीय सिद्ध होते हैं । दिगम्बरपक्ष इन दोनों पुराणों के कर्त्ता दिगम्बर हैं, यापनीय नहीं । इसके प्रमाण १९वें और २१वें अध्यायों में द्रष्टव्य हैं । अतः यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि इनके द्वारा गुर्वावली में उल्लिखित सिद्धसेन दिगम्बर ही हैं । उक्त पुराणकर्त्ताओं के यापनीय न होने से सिद्ध है कि प्रस्तुत किया हेतु असत्य है । यापनीयपक्ष Jain Education International डॉ० पटोरिया – सन्मतिसूत्र का श्वेताम्बरग्रन्थों में भी आदरपूर्वक उल्लेख है । जीतकल्पचूर्णि में सन्मतिसूत्र को सिद्धिविनिश्चय के समान प्रभावक ग्रन्थ कहा गया है । सिद्धिविनिश्चय भी सम्भवतः यापनीय शिवार्यकृत ग्रन्थ है, क्योंकि शाकटायनव्याकरण में शिवार्यकृत सिद्धिविनिश्चय ग्रन्थ का उल्लेख है । निशीथचूर्णि में भी इसी प्रकार 'सिद्धिविनिश्चय', 'सन्मति' आदि का दर्शनप्रभावक ग्रन्थ के रूप में उल्लेख है । इससे सिद्ध होता है कि सिद्धसेन यापनीय हैं । १५६ १५६. यापनीय और उनका साहित्य / पृ. १४३ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy