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________________ अ० १८ / प्र० ७ दिगम्बरपक्ष इस द्वात्रिंशिका में युगपद्वाद का प्रतिपादन है, जो सन्मतिसूत्र के अभेदवाद के विरुद्ध है। अतः वह किसी अन्य सिद्धसेन की कृति है, सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन की नहीं। फलस्वरूप उसके वर्ण्यविषय के आधार पर सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन यापनीय सिद्ध नहीं होते। चूँकि 'पंचम द्वात्रिंशिका' सन्मतिसूत्रकार की कृति नहीं है, अतः यह हेतु भी असत्य है। सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन : दिगम्बराचार्य / ६१९ ४ यापनीयपक्ष डॉ० उपाध्ये - निश्चयद्वात्रिंशिका में कुछ सैद्धान्तिक मतभेद हैं, जो सिद्धसेन की यापनीय-सम्प्रदायगत मान्यताएँ हो सकती हैं, उन्हीं के कारण उन्हें द्वेष्यश्वेतपट कहा गया है। दिगम्बरपक्ष निश्चयद्वात्रिंशिका में वर्णित मान्यताएँ सन्मतिसूत्र के सर्वथा विरुद्ध हैं, अतः यह सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन की कृति नहीं है। देापवेनपट (शत्रु मारे जाने योग्य प्रवेताम्बर। विशेषण तो इस द्वात्रिंशिकाकार के श्वेताम्बर होने का ही सूचक है । निश्चय - द्वात्रिंशिका के सन्मतिसूत्रकार की कृति न होने से प्रस्तुत हेतु भी असत्य है । यापनीयपक्ष डॉ० उपाध्ये—सिद्धसेन के परम्परा से भिन्न मतों को उनके प्रगतिशील होने का ही लक्षण मानना उचित नहीं है, अपितु संभव है कि वे मान्यताएँ यापनीयसम्प्रदाय से सम्बन्ध रखती हों । Jain Education International दिगम्बरपक्ष वे मान्यताएँ यापनीयसम्प्रदाय से सम्बन्ध रखती हैं, इसे सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है । इसलिए प्रमाण के बिना उन्हें यापनीयसम्प्रदाय की मान्यताएँ मान लेना अप्रामाणिक होगा । अभेदवाद की मान्यता दिगम्बरों के यौगपद्यवाद के निकट है, अतः उसके प्रतिपादक सिद्धसेन एक प्रगतिशील दिगम्बर सिद्ध होते हैं । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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