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________________ ४५८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ अ०१७/प्र०२ ४ शिवार्य दिगम्बर थे . यापनीयपक्ष शिवार्य ने भगवती-आराधना में सर्वनन्दी को गुरु कहा है। उन्हीं सर्वनन्दी का उल्लेख यतिवृषभ ने तिलोयपण्णत्ती में किया है। शिवार्य यापनीयसंघ के थे, इसलिए उनके गुरु का उल्लेख करनेवाले यतिवृषभ भी यापनीसंघ के होंगे। (जै.ध.या.स./ पृ. ११४)। दिगम्बरपक्ष भगवती-आराधना में यापनीयमत विरोधी सिद्धान्तों का प्रतिपादन है, यह सोदाहरण निरूपित किया जा चुका है। अतः उसके कर्ता शिवार्य यापनीय नहीं, दिगम्बर थे। अतः उन्हें यापनीय मानने का हेतु मिथ्या है। इससे सिद्ध है कि यतिवृषभ यापनीय नहीं थे। नाम के साथ 'यति' शब्द का प्रयोग यापनीय होने का लक्षण नहीं यापनीयपक्ष यतिवृषभ के नाम के पहले यति शब्द जुड़ा हुआ है, जो यापनीय मुनियों की उपाधि है, जैसे 'यतिग्रामाग्रणी पाल्यकीर्ति शाकटायन।' अतः वे यापनीय थे। (जै.ध.या.स./पृ. ११४-११५)। दिगम्बरपक्ष यतिग्रामाग्रणी में यति शब्द नाम के पहले नहीं, अपितु उपाधि के पहले जुड़ा हुआ है। और ऐसी उपाधि अन्य किसी भी यापनीय साधु या आचार्य के साथ जुड़ी नहीं मिलती, जैसे अर्ककीर्ति, जिननन्दी, रविचन्द्र, शुभचन्द्र आदि के साथ।२६ इसके अतिरिक्त दिगम्बरजैनग्रन्थ न्यायदीपिका के कर्ता अभिनवधर्मभूषणयति२७ (१४ वीं २६. डॉ. ए. एन. उपाध्ये : 'जैनधर्म के यापनीय संघ पर कुछ और प्रकाश'। 'अनेकान्त' __ (मासिक)। महावीर निर्वाण विशेषांक, १९७५ / पृष्ठ २४७।। २७. इति श्रीपरमार्हताचार्य-धर्मभूषण-यतिविरचितायां न्यायदीपिकायां---।" न्यायदीपिका। प्रमाणसामान्य-लक्षण/प्रथम प्रकाश/ पृष्ठ २२। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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