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________________ अ०१७/प्र०२ तिलोयपण्णत्ती / ४५७ दिगम्बरों में कसायपाहुडचूर्णि का लेखन यापनीयपक्ष दिगम्बरों में कोई चूर्णि नहीं लिखी गई, अतः कसायपाहुड पर रचित चूर्णिसूत्र यापनीयमत के ही होंगे। इसलिए उसके कर्ता यतिवृषभ यापनीय हैं। अतः उनके द्वारा रचित तिलोयपण्णत्ती यापनीयग्रन्थ है। (जै.ध.या.स./पृ.११४)। दिगम्बरपक्ष ऊपर सिद्ध किया जा चुका है कि यतिवृषभ दिगम्बर हैं। अतः उनके द्वारा रचित कसायपाहुडचूर्णि भी दिगम्बरग्रन्थ है। अतः ‘दिगम्बरों में कोई चूर्णि नहीं रची गई' यह मान्यता असत्य है अर्थात् प्रस्तुत किया गया हेतु असत्य है। इससे स्पष्ट है कि तिलोयपण्णत्ती यापनीयग्रन्थ नहीं है। उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थ-परम्परा कपोलकल्पित यापनीयपक्ष उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थपरम्परा के आर्यमंक्षु और नागहस्ती से कसायपाहुड का ज्ञान उत्तराधिकार में बोटिकों (यापनीयों) को ही प्राप्त हो सकता है, दक्षिणभारतीय दिगम्बरों को नहीं। इसलिए यतिवृषभ बोटिक (यापनीय) थे। (जै.ध.या.स/ पृ.११४)। दिगम्बरपक्ष द्वितीय अध्याय के तृतीय प्रकरण में सिद्ध किया जा चुका है कि उत्तरभारतीयसचेलाचेल-निर्ग्रन्थपरम्परा का अस्तित्व ही नहीं था, इसलिए आर्यमंक्षु और नागहस्ती भी उस परम्परा के आचार्य नहीं थे। इसलिए कसायपाहुड भी उसमें नहीं रचा गया था। इसलिए श्वेताम्बर और यापनीय सम्प्रदाय भी उससे उद्भूत नहीं हुए थे। इसलिए कसायपाहुड का ज्ञान भी उस परम्परा से उत्तराधिकार में यापनीयों को प्राप्त नहीं हुआ था। इसलिए यतिवृषभ भी यापनीय नहीं थे। इसलिए उनके द्वारा रचित तिलोयपण्णत्ती भी यापनीयग्रन्थ नहीं है। अतः वह दिगम्बरग्रन्थ है। इस प्रकार उत्तरभारतीयसचेलाचेल-निर्ग्रन्थपरम्परावाला हेतु तथा उस पर आधारित अन्य सभी हेतु असत्य हैं, इससे सिद्ध है कि तिलोयपण्णत्ती यापनीयग्रन्थ नहीं है। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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