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________________ अ० १६ / प्र० ४ व्याख्याप्रज्ञ. तत्त्वार्थसूत्र यहाँ तत्त्वार्थसूत्र और कुन्दकुन्द के भावपाहुड दोनों में विनय के पाँच प्रकार बतलाये गये हैं, जब कि श्वेताम्बर - व्याख्याप्रज्ञप्ति में सात प्रकार । अतः 'ज्ञानदर्शनचारित्रोपचारा: ' सूत्र भी दिगम्बरग्रन्थों के ही निकट है। पं० सुखलाल जी संघवी एवं डॉ० सागरमल जी के मानदंड के अनुसार व्याख्याप्रज्ञप्ति का यह सूत्र तत्त्वार्थसूत्र, भावपाहुड और दंसणपाहुड के उपर्युक्त सूत्र और गाथांशों में वर्णित अर्थ की अपेक्षा विकसित अर्थवाला भी है, जो अर्वाचीन होने का लक्षण है । षट्खंडाग समवायांग — Jain Education International - तत्त्वार्थसूत्र / ४०९ विणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा—णाणविणए दंसणविणए चरित्तविणए मणविणए वइविणए कार्याविणए लोगो - वेयारविणए । २५ / ७ / ८०२ । - ३८ सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोप शान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः । ९/४५ । सम्मत्तप्पत्ती वि य दंसणमोह सावयविरदे अणंतकम्मंसे । कसायउवसामए य उवसंते ॥ ७॥ खवर य खीणमोहे जिणे य णियमा भवे असंखेजा । तव्ववदो कालो संखेज्जगुणाए य सेडीए ॥ ८ ॥ पु. १२ / ४,२ / पृ. ७८ । कम्मविसोहिमग्गणं पडुच्च चउदस जीवद्वाणा पण्णत्ता, तं जहां - मिच्छादिट्ठी सासायणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छदिट्ठि अविरषसम्मट्ठी विरयाविरए पमत्तसंजए अप्पमत्तसंजए निअट्टीबायरे अनि अट्टिबायरे सुहुमसंपराए उवसामए वा खवए वा उवसंतमोहे वा खीणमोहे सजोगीकेवली अजोगीकेवली । समवाय १४ तत्त्वार्थ के उपर्युक्त सूत्र एवं षट्खण्डागम की उक्त गाथाओं में गुणश्रेणिनिर्जरा के दस स्थानों का वर्णन किया गया है। उनमें नाम, क्रम और संख्या का शब्दशः साम्य है। उनके साथ श्वेताम्बर - आगम समवायांग का जो सूत्र उद्धृत किया गया है, उसे तत्त्वार्थसूत्र - जैनागम - समन्वय ग्रन्थ के श्वेताम्बर - लेखक उपाध्याय मुनि श्री आत्माराम जी ने तत्त्वार्थसूत्र के उपर्युक्त गुणश्रेणिनिर्जरास्थान - प्रतिपादक सूत्र का स्रोत बतलाया हैं । किन्तु वह गुणश्रेणिनिर्जरास्थानों का प्रतिपादक है ही नहीं । उसमें तो चौदह For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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