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________________ सर्वार्थसिद्धि और भाष्य में वाक्यगत साम्य श्वेताम्बर विद्वानों तथा दिगम्बर विद्वान् पं० नाथूराम जी प्रेमी ने सर्वार्थसिद्धिटीका और तत्त्वार्थाधिगमभाष्य में अनेक जगह वाक्यगत साम्य होने से यह निष्कर्ष निकाला है कि सर्वार्थसिद्धि में भाष्य का अनुकरण किया गया है, अतः भाष्य की रचना सर्वार्थसिद्धि के पूर्व हुई है। किन्तु यह निष्कर्ष किन्हीं प्रमाणों पर आश्रित नहीं है, अपितु स्वबुद्धिकल्पित है। उपलब्ध प्रमाण ठीक इसके विपरीत निष्कर्ष प्रदान कर हैं। उन प्रमाणों को हम बाद में प्रस्तुत करेंगे। पहले उन वाक्यों पर दृष्टि डाल ली जाय जो सर्वार्थसिद्धि और भाष्य में प्रायः ज्यों के त्यों मिलते हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं स० सि० भाष्य स० सि० भाष्य स० सि० भाष्य स० सि० द्वितीय प्रकरण सर्वार्थसिद्धि की भाष्यपूर्वता के प्रमाण Jain Education International — — १ " एतेषां स्वरूपं लक्षणतो विधानतश्च पुरस्ताद् विस्तरेण निर्देक्ष्यामः ।" १ / १ / पृ. ४ । "तं पुरस्ताल्लक्षणतो विधानतश्च विस्तरेणोपदेक्ष्यामः।” १/१। २ " एषां प्रपञ्च उत्तरत्र वक्ष्यते । " १ / १ / १८ /पृ. ११ । "तांल्लक्षणतो विधानतश्च पुरस्ताद् विस्तरेणोपदेक्ष्यामः।” १/४ । ३ " चक्षुषा अनिन्द्रियेण च व्यञ्जनावग्रहो न भवति । " १ / १९ । " चक्षुषा नोइन्द्रियेण च व्यञ्जनावग्रहो न भवति । " १ / १९ । ४ "काष्ठपुस्तचित्रकर्माक्षनिक्षेपादिषु सोऽयमिति स्थाप्यमाना स्थापना । ' १/५। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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