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________________ [अट्ठाईस] जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ शती में इस संघ से केवल सचेलधर्म के समर्थक श्वेताम्बरसंघ का और संचेलअचेल दोनों धर्मों के समर्थक यापनीयसंघ का जन्म हुआ।' ये तीनों संघ सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति, परतीर्थिकमुक्ति एवं केवलिभुक्ति को मानते थे। महावीर का गर्भपरिवर्तन भी इन तीनों को मान्य था। डॉ० सागरमल जी ने अपनी कहानी में यह भी गढ़ा है कि कुन्दकुन्द का श्रमणसंघ दक्षिणभारतीय-निर्ग्रन्थसंघ कहलाता था और उनका जन्म ईसापूर्व प्रथम शताब्दी में नहीं, अपितु ईसोत्तर पाँचवीं (विक्रम की छठी) शताब्दी में हुआ था। दिगम्बर विद्वान् पं० नाथूराम जी प्रेमी ने यह उद्भावना की है कि भगवतीआराधना, उसकी विजयोदयाटीका, मूलाचार और तत्त्वार्थसूत्र दिगम्बरग्रन्थ नहीं हैं, बल्कि यापनीयपरम्परा के ग्रन्थ हैं। दिगम्बर जैन विदुषी श्रीमती डॉ० कुसुम पटोरिया ने इन ग्रन्थों के अतिरिक्त कुछ और दिगम्बरग्रन्थों को भी यापनीय-परम्परा में रचित बतलाया है। इससे प्रेरणा पाकर श्वेताम्बर विद्वान् डॉ. सागरमल जी ने उक्त ग्रन्थों के साथ षट्खण्डागम, कसायपाहुड, तिलोयपण्णत्ती, वरांगचरित आदि सोलह दिगम्बर-ग्रन्थों को यापनीयपरम्परा का ग्रन्थ घोषित कर दिया और तत्त्वार्थसूत्र तथा सन्मतिसूत्र को स्वकल्पित उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थसंघ के आचार्यों द्वारा रचित बतलाया है। उन्होंने अनेक कपोलकल्पित हेतुओं के द्वारा इसकी पुष्टि करने का प्रयत्न किया है। द्वितीय अध्याय-उपर्युक्त मिथ्या मान्यताओं को सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत किये गये कपोलकल्पित हेतुओं में से अनेक की कपोलकल्पितता का उद्घाटन द्वितीय अध्याय में किया गया है। इस अध्याय में सप्रमाण सिद्ध किया गया है कि १. वीरनिर्वाण सं० ६०९ (ई० सन् ८२) में बोटिक शिवभूति ने दिगम्बरमत की स्थापना नहीं की थी, अपितु श्वेताम्बरमत छोड़कर परम्परागत दिगम्बरमत का वरण किया था। शिवभूति की मान्यता थी कि श्रुत में अचेलत्व का ही उपदेश है और जिनेन्द्र-गृहीत होने से अचेललिंग ही प्रामाणिक है। यह शिवभूति के वचनानुसार दिगम्बरमत के परम्परागत होने का प्रमाण है। २. आचार्य कुन्दकुन्द को आधुनिक श्वेताम्बर मुनियों एवं विद्वानों ने ईसा की पाँचवीं शताब्दी (४७०-४९० ई०) के कदम्बवंशी राजा श्रीविजयशिवमृगेशवर्मा का समकालीन एवं दिगम्बरमत का संस्थापक माना है। किन्तु इसी राजा के देवगिरिताम्रपत्रलेख में श्वेतपट-महाश्रमणसंघ के साथ उसके प्रतिपक्षी दिगम्बरजैनसंघ का निर्ग्रन्थमहाश्रमणसंघ के नाम से उल्लेख हुआ है, जिससे सिद्ध है कि दिगम्बरजैनमत पाँचवीं शताब्दी ई० के पूर्व से चला आ रहा था। इसके अतिरिक्त पाँचवीं शती ई० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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