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________________ २२६ २२७ २३० २३५ २३९ [चौदह] जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ १. दिगम्बराचार्यों के लिए प्रमाणभूत २१९ २. समस्त टीकाएँ दिगम्बर आचार्यों और पण्डितों द्वारा लिखित २२० ३. मूलाचार की रचना यापनीयसंघोत्पत्ति-पूर्व २२१ द्वितीय प्रकरण-यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता का उद्घाटन २२२ १. 'विरती' शब्द का प्रयोग उपचार से २२२ - निर्ग्रन्थी शब्द का प्रयोग नहीं २२५ २. आर्यिकाओं के लिए मुनियोग्य सामाचार का विधान नहीं ३. आर्यिकाओं की परम्परया मुक्ति का कथन ४. आर्यिका का मुनिसंघ में समावेश मुनितुल्य होने का प्रमाण नहीं २२९ ५. स्त्री की औपचारिक दीक्षा मान्य ६. समान गाथाएँ दिगम्बरग्रन्थों से गृहीत २३३ ७. कथित गाथाएँ दिगम्बरत्व-विरोधी नहीं ८. 'आचार', 'जीतकल्प' ग्रन्थों के नाम नहीं २३८ ९. 'आराधनानियुक्ति' आदि दिगम्बरग्रन्थों के नाम १०. 'मूलाचार' की रचना का आधार 'आवश्यकनियुक्ति' नहीं २४४ ११. कुन्दकुन्द की ही परम्परा का ग्रन्थ २४५ १२. 'मूलाचार' में श्वेताम्बरीय गाथाओं का अभाव - उपसंहार : दिगम्बरकृति होने के प्रमाणसूत्ररूप में २४८ षोडश अध्याय तत्त्वार्थसूत्र प्रथम प्रकरण-तत्त्वार्थसूत्र के श्वेताम्बरग्रन्थ न होने के प्रमाण २५३ क- श्वेताम्बरग्रन्थ होने के पक्ष में प्रस्तुत हेतु २५३ ख– हेतुओं की असत्यता और हेत्वाभासता २५४ ग- सूत्र और भाष्य के भिन्नकर्तृत्व-साधक प्रमाण २५५ १. सूत्र और भाष्य में सम्प्रदाय भेद १.१. सूत्र में अन्यलिंगि-मुक्तिनिषेध १.२. सूत्र में गृहिलिंगि-मुक्तिनिषेध १.३. सूत्र में सवस्त्रमुक्तिनिषेध २६३ २४७ २५५ २५६ २६१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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