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________________ अन्तस्तत्त्व पञ्चदश अध्याय मूलाचार प्रथम प्रकरण - मूलाचार के दिगम्बर ग्रन्थ होने के प्रमाण क- मूलाचार का महत्त्व ख- - मूलाचार संग्रहग्रन्थ नहीं ग - • यापनीय ग्रन्थ होने की नई उद्भावना : समर्थक हेतु घ- सभी हेतु असत्य - दिगम्बरग्रन्थ होने के अन्तरंग प्रमाण : यापनीयमत विरुद्ध सिद्धान्तों का प्रतिपादन १. सवस्त्रमुक्ति अमान्य ङ - २. १.१. आचेलक्य मुनि का मूलगुण १.२. आचेलक्य के बिना संयतगुणस्थान असंभव १.३. सर्वांग - निर्वस्त्रता ही अचेलता और निर्ग्रन्थता १.४. आचेलक्य का अर्थ अल्पचेलत्व नहीं १.५. आचेलक्य चारित्र का साधन १.६. निर्ग्रन्थ को ही निर्वाण की प्राप्ति यापनीय - अमान्य २८ मूलगुणों का विधान२.१. योगचिकित्साविधि - न्याय कर्मसिद्धान्त के प्रतिकूल २.२. यापनीय परम्परा में अन्य प्रकार के २७ मूलगुण २.३. उत्तरगुण भी यापनीयमत में अमान्य ३. स्त्रीमुक्ति अमान्य ४. अन्यलिंग से मुक्ति का निषेध ५. गृहिलिंग से मुक्ति का निषेध ६. अपरिग्रह का लक्षण यापनीयमत-विरुद्ध Jain Education International ७. गुणस्थानानुसार रत्नत्रय के विकास की मान्यता ८. सोलह कल्पों की मान्यता ९. नौ अनुदिश- स्वर्गों की मान्यता १०. वेदत्रय की स्वीकृति च - दिगम्बरकृतित्व - विषयक बहिरंग प्रमाण For Personal & Private Use Only [ तेरह ] १९३ १९३ १९६ १९७ १९८ १९८ १९८ १९८ २०० २०० २०० २०१ २०२ २०२ २०७ २०८ २१० २१० २१३ २१४ २१५ २१६ २१७ २१८ २१८ २१९ www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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