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________________ अन्तस्तत्त्व २६५ २६८ २७० २७१ २७५ २७८ [पन्द्रह] १.३.१. नग्न रहने पर ही शीतादिपरीषह संभव २६३ १.३.२. श्वेताम्बरागमों में परीषहत्राणार्थ ही वस्त्रधारण की अनुमति २६४ १.३.३. चोलपट्टधारी को नाग्न्यपरीषह संभव नहीं १.३.४. अर्धफालकधारी को नाग्न्यशीतादि-परीषह संभव नहीं १.३.५. श्वेताम्बरमत में नाग्न्य हेय है १.३.६. श्वेताम्बरमत में शीतादिपरीषह निवारणीय हैं, सहनीय नहीं १.३.७. तत्त्वार्थसूत्र में उपचारनाग्न्य मान्य नहीं १.३.८. परीषहजय की कल्पित परिभाषा युक्तिसंगत नहीं २७४ १.३.९. याचनापरीषहजय भी सवस्त्रमुक्तिविरोधी २७४ १.३.१०. दिन को रात बना देने का अद्भुत साहस १.४. सूत्र में स्त्रीमुक्तिनिषेध १.५. अपरिग्रह की परिभाषा वस्त्रपात्रादिग्रहण-विरोधी १.६. तीर्थंकरप्रकृति-बन्धक हेतुओं की सोलह संख्या श्वेताम्बरमत-विरुद्ध २८८ १.७. सूत्र में केवलिभुक्ति-निषेध- १.७.१. नाग्न्यपरीषह के उल्लेख से केवली का कवलाहारी होना निषिद्ध २९६ १.७.२. अनन्तसुख की अवस्था में कोई भी परीषह संभव नहीं १.७.३. केवली में चर्यादि-परीषहों का अभाव अन्य कारणों से भी १.७.४. याचनापरीषह-निषेध से केवलिभुक्ति का निषेध । २९८ १.७.५. इच्छा, याचना तीव्रमोहोदय का कार्य २९९ १.७.६. परीषह न होने पर भी होने का कथन क्यों? ३०० १.७.७. साम्प्रदायिकता का आरोप और उसका निराकरण ३०५ २. सूत्र और भाष्य में विसंगतियाँ ३०६ ____ . २.१. 'यथोक्तनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम्' ३०७ २८५ २८९ २९७ २९८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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